My Blog List

Thursday, May 10, 2012

हर ज़ख्म दिल में महफूज़ न छुपाया होता!















तन्हा ही हर दर्द-ए-गम को न भुलाया होता,
मुदित सरगम तार वीणा का बजाया होता !


सरे वक्त जलते न पलकों पे अश्कों के दीये,
हर ज़ख्म दिल में महफूज़ न छुपाया होता!


चाह की मंडियों में अगर प्रेम बिकता बेगरज,
मुहब्बत का तनिक दांव हमने भी लगाया होता !


मुद्दतों से उनीन्दे शिथिल तृषित नयन आतुर,
भोंहें सहलाकर न इन्हें खुद ही सुलाया होता !


रास आ जाती सोहबत किंचित मुए चित को,
दीपक प्यार का इक हमने भी जलाया होता !


गैरों के जुर्म-कुसूर को भी अपना कबूलकर,
सर अपने हर तोहमत को न उठाया होता !


अगर मिलती न कम्वख्त ये खलिश 'परचेत',
मुकद्दर को हमने यूं पत्थर न बनाया होता !

2 comments:

India Darpan said...

बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


इंडिया दर्पण
की ओर से आभार।

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुंदर.............
बेहतरीन गज़ल....

सादर