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Monday, June 8, 2009

नही मालूम !

मुझे नही मालूम,
लोगो का यह कहना कहां
तक सही है कि
मुझे सिर्फ़ मेरी,
कोई होने वाली
मह्बूबा ही सुधार पायेगी,
मेरी खुद की सोच,
जो बैठी है कहीं
आसमान की बुलंदी पर
वही उसे सलीखे से किसी रोज,
इस धरा पर उतार पायेगी,

नही मालूम,
लोगो का यह सोचना
कहां तक उचित है कि
मेरी बिगडी हुई किस्मत,
मेरी मह्बूबा ही संवार पायेगी,
बहारों के काफिले
जो अब निकल जाते है
घर के आगे से
उसके आने के बाद थोडी खुसी,
मेरे दर पे भी पधार पायेगी,

नही मालूम कि
लोगो का यह देखना
कितना सटीक है कि
मेरे इस गुस्सैल स्वभाव को,
मेरी मह्बूबा ही दुलार पायेगी,
मुझे तो बस इतना मालूम है
कि साहित्य मे रुचि वाली हुई
तो, मेरी कवितायें पढके
अपना वक्त,
मजे से गुजार पायेगी !!

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