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Friday, March 15, 2013

मायके वाले तो तुम्हारे, तुमसे भी बड़े दगाबाज निकले।


घर से ये कुटुंब वाले, क्या अरमान लेकर आज निकले,
इनके दिल की गहराइयों से, बस यही अल्फाज निकले।

छलने में यूं तो तुम्हारा कोई सानी नहीं बहुरानी, मगर
 मायके वाले तो तुम्हारे, तुमसे भी बड़े दगाबाज निकले। 

माशाल्लाह! क्या कहने है, तुम्हारे इन ससुरालियों का, 
 ससुर दिल फेंक और सैय्या झूटों के बड़े सरताज निकले।

गुलाम,टहलुआ तो क्या, धाक ऐसी जमाई प्रधान पर भी, 
मजाल क्या किसी की, खिलाफ तुम्हारे आवाज निकले। 

ये ठगों का बस्ता तुम्हारा,इस बस्ती का दुर्भाग्य समझो, 
जयचंदों की तो फ़ौज निकले, कोई न पृथ्वीराज निकले। 

रिश्तेदार होते हैं भरोसे के काबिल, टूटा ये भ्रम 'परचेत',
नेक समझा जिन्हें वो, कबूतर के चेहरे में बाज निकले। 
   

2 comments:

Tamasha-E-Zindagi said...

ये ठगों का बस्ता तुम्हारा,इस बस्ती का दुर्भाग्य समझो,
जयचंदों की तो फ़ौज निकले, कोई न पृथ्वीराज निकले।

मार डाला इन पंक्तियों ने जनाब | विचित्र लेखन | सटीक और सधा हुआ | आभार

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Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सटीक और सच्ची बात...सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ