की होती अगर थोड़ी वफ़ा जिन्दगी से,
तो होते न इस कदर खफा जिन्दगी से !
बढ़ाए जो कदम होते ख्वाइशों के दर पर,
मुहब्बत फरमाकर इक दफा जिन्दगी से !
बनता न दस्तूर तब ये जमाने का ऐसा,
रख लेता कमाकर जो नफ़ा जिन्दगी से !
किये क्यों बयां राज बेतकल्लुफी के ऐंसे,
बदले में पाई जो हरदम जफा जिन्दगी से !
ऐतबार बनता न बेऐतबारी का सबब,
जुड़ जाता जो इक फलसफा जिन्दगी से !
छवि गूगल से साभार !
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