दिन आयेगा महफ़िल में जब, होंगे न हम एक दिन,
ख़त्म होकर रह जायेंगे सब रंज-ओ-गम एक दिन।
नाम मेरा जुबाँ पे लाना, अखरता है अब तक जिन्हें ,
जिक्र आयेगा तो नयन उनके भी होंगे नम एक दिन।
किस तरह भी रखा कायम, हमने अपने वजूद को,
इल्म न था इस कदर हमपर होंगे सितम एक दिन।
जख्म रहें ज़िंदा सदा ये सोचकर, उन्हें खरोचता रहा,
दिल पिघलेगा, वो आएंगे, लगाने मरहम एक दिन।
ढुलमुल यूँ इसतरह कबतक, चलती रहेगी जिन्दगी,
कुछ न कुछ सख्त तो उठाने ही होंगे कदम एक दिन।
महंगी वसूली हमसे 'परचेत',कीमत हमारे शुकून की,
वक्त आयेगा जब भाव उनके भी होंगे कम एक दिन।
छवि गूगल से साभार !
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