आज आप पहले मेरा ताजातरीन जोक पढ़िए, फिर नज्म ;
एक पड़ोसन दूसरी से पूछती है; तुम अपने शौहर से इतना क्यों झगडती हो,
आखिर इसका आउटकम क्या निकलता है?
दूसरी पड़ोसन: क्या करू, झगड़ना तो मैं भी नहीं चाहती मगर, वो घर से आउट कम निकलते है.....................:) :)
रूठो न इस तरह कि बात ख़ास से आम हो जाए,
अकुलाहट धडकनों की हयात सुबह की शाम हो जाए।
कुछ इस तरह संभाले हम, बिखरने की ये कवायदें,
फजीहत न महफ़िल में,रिश्तों की सरेआम हो जाए।
ढूंढें फिरे तहेदिल से, नफरतों में तेरी मुहब्बत को,
फीके न पड़े ये जलवे, कोशिश न नाकाम हो जाए।
संजोकर रखे हुए जख्मों को जरा मरहम लगाकर के,
दिलों को यूं मनायें कि जाँ, इक-दूजे के नाम हो जाए।
आगाज कर 'परचेत' कुछ ऐंसा सुखद अंजाम हो जाए,
नाम की क्या फिकर तुझको, मुन्नी बदनाम हो जाए।
अकुलाहट धडकनों की हयात सुबह की शाम हो जाए।
कुछ इस तरह संभाले हम, बिखरने की ये कवायदें,
फजीहत न महफ़िल में,रिश्तों की सरेआम हो जाए।
ढूंढें फिरे तहेदिल से, नफरतों में तेरी मुहब्बत को,
फीके न पड़े ये जलवे, कोशिश न नाकाम हो जाए।
संजोकर रखे हुए जख्मों को जरा मरहम लगाकर के,
दिलों को यूं मनायें कि जाँ, इक-दूजे के नाम हो जाए।
आगाज कर 'परचेत' कुछ ऐंसा सुखद अंजाम हो जाए,
नाम की क्या फिकर तुझको, मुन्नी बदनाम हो जाए।
छवि गुगुल से साभार
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