कल एक सवाल पूछा था मैंने एक ख़ास बुद्धिजीवी वर्ग से, समयाभाव के कारण आज उस पर एक यथोचित लेख न लिख सका, जिसके लिए क्षमा ! मैं उन सभी मित्रों का आभार व्यक्त करना चाहूंगा, जिन्होंने अपने महत्वपूर्ण विचार उस लेख पर टिप्पणी के रूप में रखे ! और जो कुछ आज के लेख में मैं कहना चाहता था, उसका अधिकाँश हिस्सा उन्होंने टिपण्णी के रूप में रख दिया है! जिन ख़ास सज्जनों से मैंने जबाब की उम्मीद की थी, उनमे से कुछ मिले, लेकिन यही कहूंगा कि सवाल का सीधा जबाब किसी ने नहीं दिया! हाँ, श्रीमान कैरानवी साहब का जरूर शुक्रिया अदा करूंगा कि उन्होंने पहले तो गोलमाल ही जबाब दिया था, मगर मेरे पुनः अनुरोध पर उन्होंने स्टॉक मार्केट के ऊपर अपनी बेबाक राय यह रखी कि शेयर ट्रेडिंग इस्लाम के खिलाफ है! मुझे मालूम था कि वे लोग जो दूसरे के धर्म में न सिर्फ खोट निकालते फिरते है, बल्कि उनके लोगो के बारे में भी अपशब्द कहते है! इतना तो इस सवाल के जबाबो से अंदाजा आपको भी लग ही गया होगा कि वे इस सवाल का सीधा जबाब नहीं दे सकते, क्योंकि उन्हें मालूम है कि उनके खुद के आँचल अथवा चादर में कितने छेद है !
तो निष्कर्ष यही निकला कि अगर हमें तुम बुरा बताते हो तो तुम भी भले नहीं हो! यह मत भूलिए कि सनातन धर्म आदिकाल से हजारों वर्षों से चला आ रहा है, तो निश्चित है कि जो जितना पुराना धर्म होगा और जिसके ऐसे तथाकथित सेक्युलर अनुयायी होंगे जो तात्कालिक स्वार्थ सिद्धि के लिए खुद ही बेसिर-पैर की खामिया अपने धर्म में निकाल लेते है! तो उसमे बहुत सी मनगड़ंत बाते होंगी ही ! आपका धर्म तो महज १४०० साल ही पुराना है, उसके बाद भी खुद देख लीजिये कि कठमुल्लों ने अपनी सुविधा के हिसाब से फतवे निकाल-निकाल कर उसको मनमाफिक बना डाला है!
तर्कसंगत और समसामयिक बहस जिससे किसी का भला हो सकता है उसे करने में कोई बुराई नहीं, लेकिन सिर्फ दूसरे को नीचा दिखने के लिए गड़े मुर्दे उखाड़ने लगो तो जो ये सोचते है कि हम ही तोप है, तो उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि यहाँ उनके भी बाप बैठे है! कोई अगर चुप्पी साधे है तो किसी ख़ास वजह से ! तर्क संगत वाद-विवाद का एक उदाहरण इस तरह से दूंगा कि मैं अगर बुर्के की बात कर रहा हूँ, तो उसे गलत मंतव्य से न लेकर इस तरह लीजिये कि हाँ , अगर इस बहस से यह निष्कर्ष निकलता है कि बदलते हालात के मुताविक महिलाओ को बुर्के में रखना उचित नहीं है ! लेकिन अगर आप जबाब में हमारी माँ- बहिनों पर अश्लील आरोप और बेसिर-पैर की आदिकाल की बातें करने लगो तो वह कौन सी समझदारी ? दूसरे की भावनाओं को भड्काओगे , दूसरे ने भी चूड़ियाँ नहीं पहन रखी, कोई कब तक चुप रहेगा ? यह याद रहे कि जम्मू के सोमनाथ मंदिर, काशी मंदिर , दिल्ली और गोधरा के बाद गुजरात भी होता है! तो बेहतर यही है कि घृणा फैलाने की बजाये हम आपसी भाई-चारा बढ़ाएं , ताकि समूची मानव जाति का भला हो !
घृणा-नफरत की पौध के दाने से पले हो,
सारा जग गुणहीन है, बस, तुम ही भले हो !
मिंया, अपनी तो ठीक से धुल नहीं पाते,
और ज्ञानी बनकर दूसरों की धुलने चले हो !!
तनिक दूसरों पर पंक उछालने से पहले,
खुद की गरेवाँ में भी झांक लिया करो !
हर बात पे जिसका वास्ता देते हो तुम,
भले-मानुष कम से कम उससे तो डरो !!
जो तुम्हारी न सुने वो काफिर नजर आये,
गैर की आस्था से क्यों इस कदर जले हो!
मिंया, अपनी तो ठीक से धुल नहीं पाते,
और ज्ञानी बनकर दूसरों की धुलने चले हो !!
मुंह से निकलती भले हो अमन की बाते,
मगर कृत्य ने सदा खून-खराबा दिखाया !
कथनी और करनी में फर्क रहता तुम्हारे,
सदाचार ऐसा यह तुमको किसने सिखाया !!
जिस सांचे में प्रभु ने तमाम दुनिया ढली,
मत भूलो उसी सांचे में तुम भी ढले हो !
मिंया, अपनी तो ठीक से धुल नहीं पाते,
और ज्ञानी बनकर दूसरों की धुलने चले हो !!
तो निष्कर्ष यही निकला कि अगर हमें तुम बुरा बताते हो तो तुम भी भले नहीं हो! यह मत भूलिए कि सनातन धर्म आदिकाल से हजारों वर्षों से चला आ रहा है, तो निश्चित है कि जो जितना पुराना धर्म होगा और जिसके ऐसे तथाकथित सेक्युलर अनुयायी होंगे जो तात्कालिक स्वार्थ सिद्धि के लिए खुद ही बेसिर-पैर की खामिया अपने धर्म में निकाल लेते है! तो उसमे बहुत सी मनगड़ंत बाते होंगी ही ! आपका धर्म तो महज १४०० साल ही पुराना है, उसके बाद भी खुद देख लीजिये कि कठमुल्लों ने अपनी सुविधा के हिसाब से फतवे निकाल-निकाल कर उसको मनमाफिक बना डाला है!
तर्कसंगत और समसामयिक बहस जिससे किसी का भला हो सकता है उसे करने में कोई बुराई नहीं, लेकिन सिर्फ दूसरे को नीचा दिखने के लिए गड़े मुर्दे उखाड़ने लगो तो जो ये सोचते है कि हम ही तोप है, तो उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि यहाँ उनके भी बाप बैठे है! कोई अगर चुप्पी साधे है तो किसी ख़ास वजह से ! तर्क संगत वाद-विवाद का एक उदाहरण इस तरह से दूंगा कि मैं अगर बुर्के की बात कर रहा हूँ, तो उसे गलत मंतव्य से न लेकर इस तरह लीजिये कि हाँ , अगर इस बहस से यह निष्कर्ष निकलता है कि बदलते हालात के मुताविक महिलाओ को बुर्के में रखना उचित नहीं है ! लेकिन अगर आप जबाब में हमारी माँ- बहिनों पर अश्लील आरोप और बेसिर-पैर की आदिकाल की बातें करने लगो तो वह कौन सी समझदारी ? दूसरे की भावनाओं को भड्काओगे , दूसरे ने भी चूड़ियाँ नहीं पहन रखी, कोई कब तक चुप रहेगा ? यह याद रहे कि जम्मू के सोमनाथ मंदिर, काशी मंदिर , दिल्ली और गोधरा के बाद गुजरात भी होता है! तो बेहतर यही है कि घृणा फैलाने की बजाये हम आपसी भाई-चारा बढ़ाएं , ताकि समूची मानव जाति का भला हो !
घृणा-नफरत की पौध के दाने से पले हो,
सारा जग गुणहीन है, बस, तुम ही भले हो !
मिंया, अपनी तो ठीक से धुल नहीं पाते,
और ज्ञानी बनकर दूसरों की धुलने चले हो !!
तनिक दूसरों पर पंक उछालने से पहले,
खुद की गरेवाँ में भी झांक लिया करो !
हर बात पे जिसका वास्ता देते हो तुम,
भले-मानुष कम से कम उससे तो डरो !!
जो तुम्हारी न सुने वो काफिर नजर आये,
गैर की आस्था से क्यों इस कदर जले हो!
मिंया, अपनी तो ठीक से धुल नहीं पाते,
और ज्ञानी बनकर दूसरों की धुलने चले हो !!
मुंह से निकलती भले हो अमन की बाते,
मगर कृत्य ने सदा खून-खराबा दिखाया !
कथनी और करनी में फर्क रहता तुम्हारे,
सदाचार ऐसा यह तुमको किसने सिखाया !!
जिस सांचे में प्रभु ने तमाम दुनिया ढली,
मत भूलो उसी सांचे में तुम भी ढले हो !
मिंया, अपनी तो ठीक से धुल नहीं पाते,
और ज्ञानी बनकर दूसरों की धुलने चले हो !!
14 comments:
आप के लेख ओर राय से सहमत है, धन्यवाद
"दूसरे की भावनाओं को भड्काओगे , दूसरे ने भी चूड़ियाँ नहीं पहन रखी, कोई कब तक चुप रहेगा?"
बिल्कुल सही कहा आपने!
धैर्य और सहनशीलता की भी आखिर एक सीमा होती है।
गोदियाल जी नमस्कार , बड़ा मुस्किल है इन्हें सुधारना , लेकिन कोई बात नहीं हम भी हार मानने वाले नहीं है। ये हिंदुस्तान है यंहा पर कठ्मुल्लावो की नहीं चलने देंगे। चलेगी मगर साथ - साथ मिलकर एक समझदार भारतीय की तरह।
दरअसल दिक्कत इनके सिस्टम मैं हैं , इनकी गलती नहीं है। ये लोग अपने सिस्टम को सुधारना ही नहीं चाहते।
aapki baat khari hai
aapka vichaar bhi nirvikar hai
आपके विचारों से इत्तेफाक है...सच्चा धर्मिक वही है जो सामने वाले की भी आस्था को उतना ही सम्मान देता है जितना कि खुद की!
चाहे कोई भी धर्म हो, यही सिखाता है कि "जियो और जीने दो"....
sundar , dharapravaah , tark poorn chintan.
घृणा फैलाने की बजाये हम आपसी भाई-चारा बढ़ाएं , ताकि समूची मानव जाति का भला हो !
--यह विचारणीय है.
सौ प्रतिशत से अधिक नहीं दिया जा सकता इसलिये खरी और सही बात के लिये पूरे सौ प्रतिशत.
@ Tarkeshwar Giri
गिरी साहब, बिलकुल सही कहा आपने ! अपनी खाइयों से बही किताबे तो पवित्र हो गई और दूसरों की कूड़ा, इन्हें पूछा जाए कि जब अल्लाह मिंया ने वह किताब लाकर दी और कहा कि सब कुछ इस किताब में लिखे के हिसाब से करो तो इन्हें यह क्यों नहीं बता गए वो आल्हा मिंया कि इनकी वो तथाकथित जन्नत अथवा नरक (Hell) है कहाँ पर ?
सहमत हूं आपसे शत-प्रतिशत।
:)
bilkul durust kaha godiyaal sahab
godiyaal ji... bahut achche.... lage raho... itne saal gumnaami k baad 1 din jarur aayega ..... caay on.....
सहमत हूं आपसे शत-प्रतिशत।
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