
सुना था,
जब-जब अराजकता के बादल घिरते है,
यहाँ, आवारा हर कुत्ते के दिन फिरते है !
कुछ ऐसा ही परिस्थिति अबकी भी बार है,
दूषण - प्रदूषण से हुआ हर तंत्र बीमार है !
क्या कहने,
अब तो धोबी के कुत्ते के ठाठ-बाट के भी,
खूब मजे लूट रहा, घर के भी, घाट के भी !!
उसकी तो,
बस नजर, अपने बाहुल्य बढ़ाई में है,
पांचों उँगलियाँ घी में,सिर कढाई में है !
हर तरफ,
जिधर देखो, अराजकता ही नजर आती है,
रोटी की जगह टॉमी, बटर-ब्रेड खाती है !
ऐसी तो,
बादशाहत, हरगिज देखी न सुनी थी हमने,
अवाम-ए-हिंद, कभी किसी बड़े लाट के भी!
क्या कहने,
अब तो धोबी के कुत्ते के ठाठ-बाट के भी,
खूब मजे लूट रहा, घर के भी, घाट के भी !!
अब तो धोबी के कुत्ते के ठाठ-बाट के भी,
खूब मजे लूट रहा, घर के भी, घाट के भी !!
9 comments:
कुछ ऐसा ही परिस्थिति अबकी भी बार है,
दूषण - प्रदूषण से हुआ हर तंत्र बीमार है !
ऊपर लगा चित्र बहुत कुछ कह रहा है जी, ओर आप कि यह कविता भी बहुत अच्छी लगी इस , आज का सच
वा्ह गोदियाल जी,
आज तो अट्ठा मारा है।
गधे के साथ कुत्ते का
भी हुआ गुजारा है।
तंत्र जब से स्वतंत्र हुआ
अमन चैन किसे गवारा है।
आभार-टिप्पणी बक्सा खोलने के लिए।
बहुत अच्छी कविता ...
कुछ ऐसा ही परिस्थिति अबकी भी बार है,
दूषण - प्रदूषण से हुआ हर तंत्र बीमार है !
स्थिति तो यही है
आजकल तो कुत्तों के ही ज्यादा ठाठ बाठ हैं।
गोदियाल जी , ये कौन सा बनवास काटकर लौटे हैं।
खैर टिपण्णी खोलने का बहुत शुक्रिया।
badhiya
"अब तो धोबी के कुत्ते के ठाठ-बाट के भी,
खूब मजे लूट रहा, घर के भी, घाट के भी !!"
बहुत खूब!
जोरदार ठाठ-बाट हैं भाई! आरसी पी रहे हैं और खीर खा रहे हैं! :-)
बढ़िया कटाक्ष है..
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
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