इतरा न ढलते योवन पर,
हो गई अब तू बूढी है !
ढबका लगा नहीं कि टूट गई,
अरे मत भूल तू चूड़ी है !
अरे मत भूल तू चूडी है,
यह चूडी से कहे कंगना !
खनक जितना खनकना है,
फिरे बाजार या बैठ अंगना !!
क्यों भरमाये भरम रही तू,
कांच के सांचे ढली हुई है !
नीलम-पुखराज जड़े मुझमें,
तू इर्ष्या से क्यों जली हुई है ?
यहाँ हर वह जो चमकता है,
वह सोना नहीं होता है!
साथ ही रहते हम तुम दोनों,
पर हममे फर्क यही होता है !!
इक दिन टूटकर बिखरना है,
मैं कंगन फिर भी हाथ रहूंगा !
कल नई चुडियाँ खनकेगी,
और मैं उनके साथ रहूंगा !!
संवरले आज भले ही जितना,
श्रृंगार कोई वजन नही रखती !
तू चूडी है,सदा चूडी ही रहेगी,
कभी कंगन नही बन सकती !!
Saturday, July 18, 2009
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1 comment:
इक दिन टूटकर बिखरना है,
मैं कंगन फिर भी हाथ रहूंगा !
कल नई चुडियाँ खनकेगी,
और मैं उनके साथ रहूंगा !!
वाह क्या खूब कहा है,इसके सिवाय क्या कह सकता हूं!वाह, क्या खूब!
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