Friday, July 31, 2009
अहमियत-ए-प्यार !
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लौट आये पहलू में फिर से, उनके पुचकारने के बाद,
जाते भी और कहाँ भला हम, थक हारने के बाद !
प्यार की अहमियत तनिक उस ग़मख़्वार से पूछो,
मुहब्बत नसीब हो जिसे ढेरो, झक मारने के बाद !!
साहिल पे बैठ वो थामकर हाथो में चप्पू घुमाते रहे,
हमारे प्यार की कश्ती को भंवर में उतारने के बाद !
मै भला कैसे कोई हसीं ख्वाब दिल में सजा पाता,
सब्ज़ बाग़ दिखाया भी गया,मगर दुत्कारने के बाद !!
चमन-बहारों की चाह में गर्दिशों की खाक हमने छानी,
खाली हाथ लौट आये,वक्त-ए-तूफां में गुजारने के बाद !
अब तो यही कह उनका सुबह-शाम शुक्रगुजार करते है,
कि आप ही घर लौटा लाये है हमें, सुधारने के बाद !!
हाल-ए-वक्त उन पर न्योछावर कर दी सारी हसरतें,
जाम उल्फ़त पिलाये रहे गफ़लत से उबारने के बाद!
प्यार की अहमियत तनिक उस ग़मख़्वार से पूछो,
मुहब्बत नसीब हो जिसे ढेरो, झक मारने के बाद !!
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2 comments:
वाह बहुत लाजवाब रचना है!
मै भला कैसे कोई हसीं ख्वाब दिल में सजा पाता,
सब्ज़ बाग़ दिखाया भी गया, मगर दुत्कारने के बाद
लाजवाब लिखा है ........... सच में कोई चारा नहीं रहता ऐसे में
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