Friday, July 24, 2009
चलो, इक नया उल्फ़त का तराना ढूंढ लाते है !
आओ चले, हम भी इक नया उल्फ़त का तराना ढूंढ लाते है,
रिमझिम की ठंडी फुहारों में, मौसम वो पुराना ढूंढ लाते है !
बेचैन हर वक्त किये रहती है अब तो, ये दिल की हसरत,
कहीं दूर इसके निकलने का, उम्दा सा बहाना ढूंढ लाते है !
धुंधला गए, लिखे थे जो मुहब्बत के चंद अल्फाज हमने,
दिलों पर लिखने को फिर इक नया अफसाना ढूंढ लाते है !
हमारी जिन्दगी का हर लम्हा यूँ तो एक खुली किताब है,
खामोशियों में भी जो हकीकत लगे ऐसा फसाना ढूंढ लाते है !
दिल खोल के खर्च करने पर भी जो ख़त्म न हो ताउम्र,
समर्पण का कुछ ऐसा ही अनमोल, खज़ाना ढूंढ लाते है !
बैठ तेरी जुल्फों की घनेरी छाँव तले, फुरसत के कुछ पल,
गुजर सके जहाँ सकूँ से वह महफूज, ठिकाना ढूंढ लाते है !
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7 comments:
behad khubsurat bhaav... badhaayee
arsh
वाह भाई वाह ...मजा आ गया
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर भाव .. अच्छी रचना !!
धुंधला गए, लिखे थे जो मुहब्बत के चंद अल्फाज हमने,
दिलों पर लिखने को फिर इक नया अफसाना ढूंढ लाते है !
-बहुत सुन्दर!! वाह!
धुंधला गए, लिखे थे जो मुहब्बत के चंद अल्फाज हमने,
दिलों पर लिखने को फिर इक नया अफसाना ढूंढ लाते है !
Ye badhiya hai bhai !!
उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आप सभी का !
हमारी जिन्दगी का हर लम्हा यूँ तो एक खुली किताब है,
खामोशियों में भी जो हकीकत लगे ऐसा फसाना ढूंढ लाते है
लाजवाब दिल को छूने वाले ख्याल........
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