हो रहा असहिष्णुता का उद्भव,दिल में हमारे किसलिए,
उदर में लिए नित फिर रहा, विद्वेष प्यारे किसलिए ?
खुद ही नजरो से छुपाता फिर रहा प्रेम एवं सत्यनिष्ठा,
हर तरफ झूठ पर पैबंद लगाकर, ढेर सारे किसलिए ?
कल तक जो थे आदर्श और प्रेरणास्रोत हमारी राह के ,
बनकर हमारे बीच ही रह गए,अब वो बेचारे किसलिए ?
हर डूबते को दिया जिसने तिनके का कल तक सहारा,
आज अपनों बीच रहकर हो गए,वो बेसहारे किसलिए ?
खुदगर्जी की हद ने हमें , नींद से महरूम कर दिया,
लगाते फिर रहे अंधेरो को गले,तजके उजारे किसलिए ?
Saturday, July 18, 2009
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