पिछले सात सालो से,
वह होमगार्ड था,
महानगरी की सडको पर
कहीं सरपट भागते
और कहीं पर,
कछ्वे की चाल चलते
यातायात का,
मुसलाधार बारिश में भीगकर,
चिलचिलाती हुई धूप में तपकर
वह अपने गंतव्य को
जाने वालो के लिए,
रास्ता मुहैया करवाता था !
अपना कर्तव्य निभाते
दिनभर के थके-हारे
को कल शाम,
एक तेज रफ़्तार कार ने
चौराहे पर ही
मौत की नींद सुला दिया,
और आज
सूर्य निकलते ही,
वह होमगार्ड का जवान,
नींद में ही,
कुछ अपनों के कंधो का
सहारा लेकर,
निकल पडा था अपने
अंतिम पडाव की ओर,
अभागे की किस्मत और,
आधुनिकता की
ड्राइविंग सीट बैठे
मानव की खुदगर्जी देखो,
जिनके लिए वह कल तक
चलने को रास्ता बनाता था,
उन्ही ने उसे
पूरे आधे घंटे तक
सड़क पार नही करने दी,
यह जानते हुए भी कि
अब केवल आख़िरी बार उसे,
सड़क के उस पार
जाना है !!
Saturday, July 18, 2009
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