लोकतंत्र की खटिया पर जहां हर नेता,
भ्रष्टाचार की चादर ओढ़ के सोता है !
सवा सौ करोड़ के इस बीहड़ में यारो,
आज एक आम आदमी रोता है !
कर्तव्य गौण, हुआ प्रमुख आसन,
निकम्मा, सुप्त पडा वृथा-प्रशासन !
लाज बचाती फिर रही द्रोपदी,
चीर हर रहा हरतरफ दुश्शासन !
धोये जिसने पग मर्यादा पुरुषोतम के ,
वही केवट अब दुष्ट-धूमिल पग धोता है !
सवा सौ करोड़ के इस बीहड़ में यारो,
आज एक आम आदमी रोता है !
चुनाव बन गया इक गड़बड़झाला,
परिवारवाद का बढ़ गया बोलबाला !
न्याय माँगता फिर रहा है दुर्बल,
फरियाद न यहाँ कोई सुनने वाला !
ओंट में वातानुकूलन की, अलसाया अफसर
घोटाले की परिक्रामी कुर्सी पर पसरा होता है !
सवा सौ करोड़ के इस बीहड़ में यारो,
आज एक आम आदमी रोता है !
कभी मुद्रास्फिती, तो कभी रिशेसन,
इसी अर्थशास्त्र में फंसा है जन-जन !
खाद्यानों के आसमान छूं रहे दाम है,
यूँ कहने को देश में है मुद्रासंकुचन !
जहां सब कुछ मंहगा, मौत है सस्ती,
गरीब अपनी लाश काँधे पे रखकर ढोता है !
सवा सौ करोड़ के इस बीहड़ में यारो,
आज एक आम आदमी रोता है !
शर्मशार हो गई पतित नैतिकता,
शरमो-हया को खा गई नग्नता !
संस्कृति नाच रही आज पबो में,
सभ्यता बन गई समलैंगिकता !
हँसते-रोते गुजरे जो अपनों के संग ,
वह बचपन अब मदमस्त नशे में खोता है !
सवा सौ करोड़ के इस बीहड़ में यारो,
एक अकेला आम आदमी रोता है !
-पी.सी. गोदियाल
Tuesday, July 21, 2009
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6 comments:
बहुत बढ़िया,
पी.सी. गोदियाल जी!
आदमी ही चोर है और आदमी मुँह-जोर है ।
आदमी पर आदमी का, हाय! कितना जोर है।।
आदमी आबाद था, अब आदमी बरबाद है।
आदमी के देश में, अब आदमी नाशाद है।।
आदमी की भीड़ में, खोया हुआ है आदमी।
आदमी की नीड़ में, सोया हुआ है आदमी।।
आदमी घायल हुआ है, आदमी की मार से।
आदमी का अब जनाजा, जा रहा संसार से।।
"शर्मशार हो गई पतित नैतिकता,
शरमो-हया को खा गई नग्नता !
संस्कृति नाच रही आज पबो में,
सभ्यता बन गई समलैंगिकता!"
रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
इस रचना में आपने कहा सत्य हालात।
भाव सबल के संग में कई पते की बात।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
यथार्थ बयानी!!
सवा सौ करोड़ के इस बीहड़ में यारो,
आज एक आम आदमी रोता है !
-यही हालात हैं!!!
शुक्रिया आप सभी लोगो का !
लाजवाब !!!! कटु यथार्थ को बहुत ही सुन्दर शब्दों में सजा आपने अभिव्यक्ति दिया है......
सत्य का उद्घाटन करती बहुत ही सुन्दर रचना....आभार.
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