वो पहली ही मर्तबा ले गई थी,
मुझे मेरे घर से भगा ले गई थी!
गले मिलने की जिद पर उतरकर ,
मुझसे दिल अपना लगा ले गई थी !!
जवाँ-गबरू, गाँव का पढ़ा-लिखा,
शरीफ सा, भोला-भाला जो दिखा,
माँ-बाप को मेरे दगा दे गई थी !
मुझे मेरे घर से भगा ले गई थी !!
अपनी ही दुनिया में खोया-खोया,
जमाने के रंगों से बेखबर सोया,
पिचकारी मारके जगा ले गई थी !
मुझे मेरे घर से भगा ले गई थी !!
होली खेलन का बस इक बहाना था,
असल मकसद तो ढूढना कान्हा था,
चतुरनार भोले को ठगा ले गई थी!
मुझे मेरे घर से भगा ले गई थी !!
आप सभी को होली की ढेर सारी शुभकामनाये !
Tuesday, March 22, 2011
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4 comments:
कविता के भाव से पता चलता है की होली पर सहेलियों के संग खूब मस्ती की है तभी तो कवि भाव हिलोरे लेने लगा सुनामी की तरह . विलंबित होली की शुभकामनाएं
माँ-बाप को मेरे दगा दे गई थी !
मुझे मेरे घर से भगा ले गई थी !! ...पहली बार सुना कोई भगा भी 'ले जाती 'है ):
अक्सर 'ले जाता 'तो सुना था .....
पिचकारी मारके जगा ले गई थी ! कमबख्त बड़ी ज़ालिम निकली .....):
कहाँ ये शरीफ भोले भाले ...बुरे फंसे होली में आप तो ....):
खैर ये होली मुबारक आपको ...
याद तो रही ....!!
Holi ki masti se sarabor...sundar...
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