जिन्दगी पहेली न बन जाए,डिफाइन किया कर,
कभी आरजू न किसी की डिक्लाइन किया कर !
परेशां हो क्यों भला कोई यहाँ जीवन सफ़र में,
या रब, मुकद्दर को ढंग से डिजाइन किया कर !!
बैर पलता है अक्सर यहाँ दिल में हर किसी के,
उसे मुहब्बत की धार देकर रिफाइन किया कर!
लोगों को न जाने बिछड़ने की बुरी लत लगी है,
हर एक बिछड़े हुए को, बस कम्बाइन किया कर !!
तुझसे दुआ मांगने की,जग की आदत खराब है,
वक्त पे खुद सबको खुशियाँ कन्साइन किया कर !
चल रहा है सब कुछ यहाँ, जब तेरे ही भरोसे,
फिर कहीं खुशी,कहीं गम न कंफाइन किया कर !!
Friday, March 11, 2011
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