Thursday, June 3, 2010
जमाना !
क्या ज़माना आ गया कि आईने में उभरते
अपने ही अक्श का संज्ञान नंगे नहीं लेते,
सरे राह किसी को एक रूपये का सिक्का
भीख में देना चाहो,तो भिखमंगे नहीं लेते !
गली से गुजरती इक मस्त-बयार कह रही थी
कि ये दुनिया सचमुच में बहुत खराब हो गई,
इसीलिये हम आजकल किसी से पंगे नहीं लेते !!
मेरे देश के लोगो !
चोर, लुच्चे-लफंगों के तुम और न कृतार्थी बनो,
जागो देशवासियों, स्वदेश में ही न शरणार्थी बनो !
भूल गए,शायद आजादी की उस कठिन जंग को ,
खुद दासता न्योताकर, अब और न परमार्थी बनो !
पाप व भ्रष्टाचार, लोकतंत्र के मूल-मन्त्र बन गए,
आदर्श बिगाड़, भावी पीढी के न क्षमा-प्रार्थी बनो !
ये विदूषक, ये अपनी तो ठीक से हांक नहीं पाते,
इन्हें समझाओ कि गैर के रथ के न सारथी बनो!
गैस पीड़ितों के भी इन्होने कफ़न बेच खा लिए,
कुछ त्याग करना भी सीखो, और न लाभार्थी बनो !
वरना तो, पछताने के सिवा और कुछ न बचेगा ,
वक्त है अभी सुधर जाओ,अब और न स्वार्थी बनो!
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28 comments:
"सरे राह किसी को एक रूपये का सिक्का
भीख में देना चाहो,तो भिखमंगे नहीं लेते!"
सत्यवचन!
"सरे राह किसी को एक रूपये का सिक्का
भीख में देना चाहो,तो भिखमंगे नहीं लेते!
भिखमंगे भी आजकल बहत स्टैण्डर्ड के हो गए हैं.....
अजी हरिदुवार मैने मैने एक भिखारी को ५० पेसे का सिक्का दे दिया..... वो उसे मेरे मुंह पर मार कर चला गया....
इसीलिये हम आजकल किसी से पंगे नहीं लेते !!
lekin vote walon ke baare me kya kahenge..
इसीलिये हम आजकल किसी से पंगे नहीं लेते !!
आपके पंगे न लेने से क्या होगा, हम पंगे तो लेंगे ही.
सुन्दर रचना
किसी से पंगा नहीं लेने का।
अच्छी बात है, पंगे नहीं ही लेने चाहिये.
जमाना वाकई में बहुत खराब आ गया है...शुक्र मनाईये कि आप बचे हुए हैं. अगर कहीं पंगा लिया होता तो :-)
सादर!
क्या कहूँ उम्र में छोटा हूँ, लेकिन जब पिछवाड़े लटकी हो बन्दुक तो वाकई पंगे नहीं लेते \
रत्नेश त्रिपाठी
sahi kaha sir pange lena matlab aafat mol lena...waise sundar abhivyakti....
महँगाई पर सटीक और सार्थक लेखन!
सरे राह किसी को एक रूपये का सिक्का
भीख में देना चाहो,तो भिखमंगे नहीं लेते !
अब तो सारे भिखमंगे भ्रष्ट नेता हो गए हैं ..
इनको एक रुपया नहीं करोड़ों का खजाना मिल गये हैं ...
हाँ ये अलग बात है की आज सच्चाई और ईमानदारी भीख मांग रहें हैं ....
बहुत सही है।
कि ये दुनिया सचमुच में बहुत खराब हो गई,
इसीलिये हम आजकल किसी से पंगे नहीं लेते !
पंगे ले कर ही तो दुनिया खराब हो गयी है... :):)
बढ़िया मुक्तक
हमने तो आज तक किसी से पंगा नहीं लिया ....एक बार उपरवाले से लिया था , नीचे भेज दिया,,,, भुगत रहे है !!!
बढ़िया मुक्तक!
बहुत सही...पंगे लेने का जमाना नहीं रहा!! :)
सत्य वचन महाराज !
पंगे लेना आसान नहीं .. दूर रहना ही अच्छा है !!
इसीलिये हम आजकल किसी से पंगे नहीं लेते !!
बहुत खूब, लाजबाब !
हम भी किसी से पंगे नहीं लेते जी
शानदार पंक्तियां
बहुत अच्छी लगी आज की यह पोस्ट
प्रणाम
ये दुनिया सचमुच में बहुत खराब हो गई,
इसीलिये हम आजकल किसी से पंगे नहीं लेते .....सुन्दर रचना
hai baat me dam..
sahmat hai ham...
kunwar ji,
गली से गुजरती इक मस्त-बयार कह रही थी
कि ये दुनिया सचमुच में बहुत खराब हो गई,
इसीलिये हम आजकल किसी से पंगे नहीं लेते !!
...satya vachan...
चंद शब्दों मे ही गज़ब की बात कह दी।
हमने तो अकसर आपको गद्दारों से पंगा लेते हुए देखा है।
बिलकुल ठीक करते हैं गोदियाल जी ।
Godiyal ji jab aap nahi lete panga to ham ka lenge...
bahut acchi kavita..
aapka aabhaar...!!
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