जख्म जो दिए, वो रखे है मैंने ज़िंदा खरोंचकर,
ऐ जिन्दगी! मैं संवारूं भी तुझे तो क्या सोचकर !
मुरादे बह गई धार में, मैं फंसा भंवर-मझधार में,
ख्वाब टूटे, साहिलों पे डूबती कश्तियों में कोचकर !
मौजे समंदर ले गया आके, उम्मीद के टापू ढाके,
किनारे पे बिखरी शिर्क आरजु, लहरें ले गई पोंछकर !
तुझसे न कोई चाव है, मन में बसा इक घाव है,
इस तरह रखूँ भी तुझको, तो कब तलक दबोचकर!
ख्वाइशे फांकती धूल हैं, गिले-शिकवे सब फिजूल हैं,
करूँ भी क्या भला,किस्मत की लकीरों को नोचकर!
Thursday, June 17, 2010
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10 comments:
ज़िन्दगी से यह बेहतरीन संवाद है ।
यह अंतरा बहुत बेहतरीन बन पड़ा है.....बधाई स्वीकार करें
ख्वाइशे फांकती धूल हैं, तुझसे शिकवे फिजूल हैं,
करूँ भी तो क्या,किस्मत की लकीरों को नोचकर !
ऐ जिन्दगी ! मैं संवारूं भी तुझे तो क्या सोचकर !!
अपने से संवाद साहित्य की महत्वपूर्ण विधा है ।
प्रशंसनीय ।
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
vaah sir ji, aapki kalam vaaki lajvaab hai.....thanks a lot my dear sir ji
bahut hi behatreen avam bhav-purn abhivykti.
poonam
जख्म जो दिए, वो रखे है मैंने ज़िंदा खरोंचकर,
ऐ जिन्दगी! मैं संवारूं भी तुझे तो क्या सोचकर !
वाह ये शे'र तो बहुत ही बढ़िया है ......!!
bahut hi khoob....
A Silent Silence : tanha marne ki bhi himmat nahi
Banned Area News : Mia Michaels is going to start her own Bravo reality show
जख्म जो दिए, वो रखे है मैंने ज़िंदा खरोंचकर,
ऐ जिन्दगी! मैं संवारूं भी तुझे तो क्या सोचकर !
शरद कोकास जी ने सही कहा, ज़िन्दगी से यह बेहतरीन संवाद है
ख्वाइशे फांकती धूल हैं,सब गिले-शिकवे फिजूल हैं,
करूँ अब क्या भला,किस्मत की लकीरों को नोचकर
....yahi to rona hain jindagi ka.... kismat apni-apni
sundar prastuti
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