न सावन की रिमझिम, न पवन करे शोर
कण-कण मे फैला है, भ्रष्ठाचार चहुं ओर
नित महंगाई, बढती जा रही है घनघोर
जन-जन त्रस्त यहां, छटपटाता हर छोर,
उसपर खजाना लिये बैठ मौज उड़ा रहे,
अलीबाबा और पांच सौ बयालीस चोर !
हवालात मे खूब मौज कर रहे है बन्दी
कोतवाल बिठाये रखे है ये अपने पसन्दी
कचहरी मे छाई है तठस्थ जजो की मन्दी
अन्धा-कानून नाचे इनके आगे जैसे मोर,
उसपर खजाना लिये बैठ मौज उड़ा रहे,
अलीबाबा और पांच सौ बयालीस चोर !
नचा रही है इन सबको, वहां एक हसीना
नाच रहा आज यहां खूब हर एक कमीना
घर-घर पे क्रोस लगाने को बेताव मर्जीना
उडेलना छोड, तेल लगाती इनपर पुरजोर
उसपर खजाना लिये बैठ मौज उड़ा रहे,
अलीबाबा और पांच सौ बयालीस चोर !
मर्जीना का नया फन्डा असरदार निकला
अलीबाबा ही चोरों का सरदार निकला
दल-दल मे डूबा हरइक किरदार निकला
रख दिया जन-मानस को करके झकझोर,
उसपर खजाना लिये बैठ मौज उड़ा रहे,
अलीबाबा और पांच सौ बयालीस चोर !
Monday, August 10, 2009
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2 comments:
गोदियाल जी मान गए आपके लेखन को...क्या लिखा है भाई ...बहुत खूब...बड़े प्यार से लपेटा है आपने सियासत को...वाह...आप तो हमारे टाईप के इंसान लगे...आना जाना होता ही रहेगा अब तो आपके ब्लॉग पर...
नीरज
haasy और vyang में रची अच्छी रचना
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