अश्रु पीकर मुस्कुराना चाहती है जिन्दगी,
फिजा को छोड़ बहार पाना चाहती है जिन्दगी,
कांटे युं तमाम देह से अबतक निकाल न पाये मगर,
इक फूल का बोझ फिर भी उठाना चाहती है जिन्दगी !
अब तक तो इस दिल की हमने एक न मानी,
ख्वाबों के बीहडों मे ही शकून-ए-खाक छानी,
हरयाली से आछादित किन्ही खुशनुमा वादियों मे,
मधुर प्यार भरा गीत गुनगुनाना चाहती है जिन्दगी !
छोडकर बेदर्द जहां के सारे दर्द-ओ-गम,
इक साज-ए-नुपुर पर ही मुग्ध हो जाये हम,
विरह की पीडा हमे भी मह्सूस होने लगे ऐसे,
उस इन्तजार मे पलके बिछाना चाहती है जिन्दगी !
जहा दर्मियां हमारे कोई और न हो,
जमाने की बन्दिशो का कोई जोर न हो,
गुजार सके पह्लु मे जिसकी कुछ पल चैन से,
चूडी-कंगन से भरा वह सिरहाना चाहती है जिन्दगी !
नोट: किसी रचनाकार(नाम नही मालूम) की एक बहुत पुरानी खुबसूरत गजल “ मेरी तमन्ना” की तर्ज पर मैने यह भाव युवा पीढी के मनोरंजनार्थ लिखे है, इन्हे कृपया अन्यथा न ले !
Monday, August 10, 2009
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5 comments:
कांटे युं तमाम देह से अबतक निकाल न पाये मगर,
इक फूल का बोझ फिर भी उठाना चाहती है जिन्दगी
प्रेम में तो इंसान सब कुछ करना चाता है............. लाजवाब लिखा है , सुन्दर रचना
चूडी-कंगन से भरा इक सिरहाना चाहती है जिन्दगी !
बहुत खूब
मै भी तो ऐसे ही किसी सिरहाने की तलाश मे हूँ
godiyal ji...
sarvpratham aabhaar ki aap mere blog par aaye aur tippani di...
ab aapki is post ke bare mein kya kahoon, dil ko chhu liya is rachna ne...
behtareen..
aate rahiyega sir....
अश्रु पीकर मुस्कुराना चाहती है जिन्दगी,
फिजा को छोड़ बहार पाना चाहती है जिन्दगी,
कांटे युं तमाम देह से अबतक निकाल न पाये मगर,
इक फूल का बोझ फिर भी उठाना चाहती है जिन्दगी !
वल्लाह .....!!!!
अब तक तो इस दिल की हमने एक न मानी,
ख्वाबों के बीहडों मे ही शकून-ए-खाक छानी,
हरयाली से आछादित किन्ही खुशनुमा वादियों मे,
मधुर प्यार भरा गीत गुनगुनाना चाहती है जिन्दगी !
badiya abhivyakti!!
अब न जिद यूँ करो ज़िन्दगी,
कुछ मेरी भी सुनो ज़िन्दगी.
मैं अकेला शराबी नहीं,
लड़खड़ाके चलो ज़िन्दगी.
मुफलिसों का खुदा है अगर,
मुफलिसी में रहो ज़िन्दगी.
बात तेरी सुनूंगा नहीं,
बात फिर भी कहो ज़िन्दगी.
फिर कहाँ है तेरी वो तपिश?
अब तो जिंदा दिखो ज़िन्दगी.
उम्र भर मैं तुम्हारा रहा,
तुम भी मेरी बनो ज़िन्दगी.
मौत 'दर्शन' डराती नहीं,
तुम अगर साथ दो ज़िन्दगी
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