हक़ ना मिल पाए जब तुम्हे मांगकर,
जुल्म गुजरने लगे जब हदे लांघकर !
क्रान्ति का बिगुल फिर बजा दो दोस्तों,
फायदा फिर कुछ नही नेह-स्वांगकर !!
देश गौरव हो या अस्तित्व की लड़ाई,
मुल्को मिल्लत की उसीने शान बढाई !
वीर बनके जाग उठे जो थाम तलवार
हाथ में, और कर दे दुश्मन पे चडाई !!
फंसना न तुम शत्रु की किसी चाल में,
जो चाहा, उसे जीत लो हर हाल में !
फ़तह का स्वाद तुम तभी चख पावोगे,
रोक लो जब शत्रु के वार को ढाल में !!
कायर यहाँ, रोज-रोज मरता ही रहेगा,
जुल्म जाहिलो के सहन करता ही रहेगा !
वीर को भी मरना तो एक बार है ही,
वो फिर क्यों जुल्म अपने ऊपर सहेगा !!
गर तुम बढोगे अपने शत्रु पर फर्लांग भर,
कदम तुम्हारे खुद-व-खुद बढेगे छलाँग भर !
कहते है लोग हिम्मते मर्दा-मदद-ए-खुदा,
कूद पड़ मैदान में, कफन सर पर टांगकर !!
हक़ ना मिल पाए जब तुम्हे मांगकर,
जुल्म गुजरने लगे जब हदे लांघकर !
क्रान्ति का बिगुल फिर बजा दो दोस्तों,
फायदा फिर कुछ नही नेह-स्वांगकर !!
Monday, August 24, 2009
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1 comment:
josh se bhri kavita
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