सुना है कि बेनमाजी भी नमाजी बन गए है ।
निट्ठले बैठे थे जो, वो कामकाजी बन गए है।।
अपना वो खौफनाक असली चेहरा छुपाने को,
दाड़ी रखकर मिंयाँ घोटा हाजी बन गए है ।
अदाई की रस्म खुद तो निभानी आती नहीं,
और जनाव इस शहर के काजी बन गए है।।
यों तो लोगो को सिखाते फिर रहे हैं कि
ख़ुदा नाफरमान की हिमायत नहीं करता।
पर जब खुद फरमान बरदारी की बात आई,
शराफत को त्याग, दगाबाजी बन गए है।।
भोग-स्वार्थ के लिए आप तो रूदिवादिता व
असामाजिकता के दल-दल में धंसे रहते है।
हक़ की बात पर उनके लिए औरतों के
Tuesday, May 19, 2009
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