संग अपने हर वक्त अपनी बेगुनाही की ख़ाक रखते है !
ये सच है कि हम आपकी हर बात से इत्तेफाक रखते है !!
यूँ मुश्किल न था कुछ भी हमें, बेशर्मी की हद को लांघना !
ख्याल आपका आता है कि हम भी इक नाक रखते है !!
तरह आपकी हमने दर्द को पलकों में छुपाये नहीं रखा !
और न नजरो में अपनी हम कोई बला–ए–ताक रखते है !!
फ़ेंक दो निकाल गर दिल में है कोई बुरा ख़याल आपके !
जख्म-ए-जिगर में हम न कोई इरादा नापाक रखते है!!
लिख देना इसपर जब भी जी करे लिखने को कोई नज्म !
दिल श्याम-पट्ट है,जेब में हर वक्त हम चाक रखते है!!
Wednesday, May 27, 2009
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4 comments:
pcg saheb,
kamaal ki ghazal
gustaki maaf karen. aisa ho to kaisa ho
फ़ेंक दो निकाल गर दिल में है कोई बुरा ख़याल आपके !
जख्म-ए-जिगर में हम कोई nahi इरादा नापाक रखते है !!
Sukriya prem ji, aur sach batau to main bhee soch rahaa tha ki kyaa missing hai.
Thank you very much for your so good suggestion. I have rectified the mistake.
Wah....
yakinan kabil-e-daad
dil syam-patt hai or jeb mein chaak rakhte hai......
kya khayal hai ,,sundar ati sundar
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