आ मिल-बैठ सुलझा ले आपसी कलह को,
ये विद्वेष सारे किसलिए ?
गर बात दिल की न हम से कह सको,
फिर हम तुम्हारे किसलिए ?
इक रोज तुम्ही ने तो हमको उठाकर,
अपनी पलकों में था बिठाया,
फिर इस तरह आज ये तन्हाई का
पल-पल, हम गुजारे किसलिए ?
याद है खाई थी हम-तुमने कसमे,
साथ सच का निभाने की उम्रभर
तो सच पर लगाये जा रहे अब नित ये,
झूठ के पैवंद प्यारे किसलिए ?
खाकर कसमें, भरोसा दिया था,
हम बनेगे हमेशा इक-दूजे का सहारा
फिर आज इतने पास रहकर भी,
हम-तुम हो गए बेसहारे किसलिए ?
बेचैन होकर रह गई दिल की उमंगें,
खफा हो गई अब रातों की नींद है,
सोचकर बताना हमें, हमने लगाए
अँधेरे गले, तजकर उजारे किसलिए ?
Tuesday, December 15, 2009
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20 comments:
आ मिल-बैठ सुलझा ले आपसी कलह को,
ये विद्वेष सारे किसलिए ?
गर बात दिल की न हम से कह सको,
फिर हम तुम्हारे किसलिए ?
पहली पंक्तियों ने ही दिल को छू लिया..... बहुत सुंदर रचना....
बेचैन होकर रह गई दिल की उमंगें,
खफा हो गई अब रातों की नींद है,
सोचकर बताना हमें, हमने लगाए
अँधेरे गले, तजकर उजारे किसलिए ?
बहुत बढ़िया!
महफूज अली ने दो लोगों को
फोन करके बुलाया तो था!
हुलिया बिगड़ गया दोनों महाशय जी का!
nice
अरे वाह .. सुंदर अभिव्यक्ति !!
गर बात दिल की न हम से कह सको,
फिर हम तुम्हारे किसलिए ?
sach kahaa aapne...
mitra, sakhaa, raazdaar hi to
jeevan ke meethe-khatte hr kshan mein kaam aata hai...
aapki panktiyaan hr pehlu ko chhooti haiN...
achhee kavita par abhivaadan .
dil jeet liya bhaaiji !
waaaaaaaaaaaaaah !
इक रोज तुम्ही ने तो हमको उठाकर,
अपनी पलकों में था बिठाया,
फिर इस तरह आज ये तन्हाई का
पल-पल, हम गुजारे किसलिए ?
बहुत सुन्दर गोदियाल साहिब ....
रचना अच्छी लगी ।
प्रेम को तलाशती सुन्दर रचना !!!!!!
बेचैन होकर रह गई दिल की उमंगें,
खफा हो गई अब रातों की नींद है,
सोचकर बताना हमें, हमने लगाए
अँधेरे गले, तजकर उजारे किसलिए ?
-एक सुन्दर रचना, बधाई.
आ मिल-बैठ सुलझा ले आपसी कलह को,
ये विद्वेष सारे किसलिए ?
गर बात दिल की न हम से कह सको,
फिर हम तुम्हारे किसलिए ?
बहुत सुंदर सुंदर बात..बढ़िया लिखा है आपने..अच्छा लगा...गोदियाल जी धन्यवाद
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना है।ऐसा लगता है मानो कोई भीतर का दर्द शब्दों मे ढाल रहा हो.....
आ मिल-बैठ सुलझा ले आपसी कलह को,
ये विद्वेष सारे किसलिए ?
गर बात दिल की न हम से कह सको,
फिर हम तुम्हारे किसलिए ?
गर बात दिल की न हम से कह सको,
फिर हम तुम्हारे किसलिए ?
दिखने मैं सरल है पर गहरे भाव छिपे हैं इसमें...
bahut khooh bhai.
ek behtreen rachna........dil ke jazbaton ko ukerti huyi.
आ मिल-बैठ सुलझा ले आपसी कलह को,
ये विद्वेष सारे किसलिए ?
गर बात दिल की न हम से कह सको,
फिर हम तुम्हारे किसलिए ?
वाह, गोदियाल जी, क्या खूब लिखा है।
बहुत बढ़िया।
बहुत ही सुन्दर रचना ! बधाई !!
हम सब समझ लेंगे,बिन कहे भी जानम
मुश्िकल कोशिशों से ये इशारे किसलिए ?
बेचैन होकर रह गई दिल की उमंगें,
खफा हो गई अब रातों की नींद है,...
प्यार भरा उल्हाना अच्छा लगा ........
बहुत सुन्दर गोदियाल साहिब ....
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