
यार "क्रिस" यूं कब तलक तुम,
ज़रा भी टस से "मस" नहीं होगे !
गिरजे की वीरान दीवारों पर,
इसी तरह 'जस के तस' रहोगे !!
ज़माना गया,जब परोपकार की खातिर,
महापुरुष खुद लटक जाया करते थे !
अमृत लोगो में बाँट कर ,
जहर खुद घटक जाया करते थे !!
युगों से चुपचाप लटके खड़े हो,
खामोशी की भी हद होती है भई !
एक बार सूली से उतर कर तो देखो,
दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गई !!
दौलत और सोहरत की चकाचौंध में,
सभ्यता निःवस्त्र घूम रही है !
संस्कृति बचाती लाज फिर रही,
बेशर्मी शिखर को चूम रही है !!
भाई-भाई का दुश्मन बन बैठा,
बेटा, बाप को लूटने की फिराक में है!
माँ कलयुग को कोसे जा रही,
बेटी घर से भागने की ताक में है !!
नैतिकता ने दम तोड़ दिया कबके,
मानवीय मूल्य सबका ह्रास हो गया !
झूट की देहरी जगमग-जगमग,
दबा सच का आँगन कहीं घास हो गया !!
लोर्ड क्रिस अब उतर भी आओ,
चहुँ ओर पाप का अन्धेरा घनघोर छा गया है !
यह आपके लटकने का वक्त नहीं,
अपितु पापियों को लटकाने का वक्त आ गया है !!
सर्वत्र तुम्ही विद्यमान हो, वो चाहे
मंदिर हो,मस्जिद, चर्च अथवा गुरुद्वारे हो !
आ जाओ क्रिस, अब आ भी जाओ,
तुम इस जग के रखवारे हो ! !
Merry Christmas to all Blogger friends !
23 comments:
"दौलत और सोहरत की चकाचौंध में,
सभ्यता निःवस्त्र घूम रही है !
संस्कृति बचाती लाज फिर रही,
बेशर्मी शिखर को चूम रही है !!"
बहुत ही सुन्दर गोदियाल जी!
nice post
कटाक्ष करती हुई एक बढ़िया सामयिक पोस्ट है।
बहुत बहुत बधाई गोदियाल जी।
भाई-भाई का दुश्मन बन बैठा,
बेटा, बाप को लूटने की फिराक में है!
माँ कलयुग को कोसे जा रही,
बेटी घर से भागने की ताक में है !!
संस्कृति बचाती लाज फिर रही,
बेशर्मी शिखर को चूम रही है !!
यथार्थ चित्रण -- भावपूर्ण
गौदियाल साहब ......... आपका HAPPY CHRISTMAS का अंदाज़ बहुत भाया .......... CHRIS KO बुला भी लिया और कटाक्ष भी कर दिया .........
दौलत और सोहरत की चकाचौंध में,
सभ्यता निःवस्त्र घूम रही है !
संस्कृति बचाती लाज फिर रही,
बेशर्मी शिखर को चूम रही है !!
aaj ke yatharth par badhiya kataksh.
लोर्ड क्रिस अब उतर भी आओ,
चहुँ ओर पाप का अन्धेरा घनघोर छा गया है !
यह आपके लटकने का वक्त नहीं,
अपितु पापियों को लटकाने का वक्त आ गया है !!
मुझे भी यही लगता है, गोदियाल जी।
सही समय पर सही रचना। बधाई।
Man ko chhoo jaane waalee abhivyakti.
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अंग्रेज़ी का तिलिस्म तोड़ने की माया।
पुरुषों के श्रेष्ठता के 'जींस' से कैसे निपटे नारी?
गोदियाल साहब,
क्या लिखा है....
इस आह्वान पर कौन न दौड़ कर आएगा...
आज की रात ही यह ख्रिस कहीं न कहीं जनम जाएगा...!!
बहुत ही भावमयी कविता...ह्रदय को आंदोलित कर गई....
लोर्ड क्रिस अब उतर भी आओ,
चहुँ ओर पाप का अन्धेरा घनघोर छा गया है !
यह आपके लटकने का वक्त नहीं,
अपितु पापियों को लटकाने का वक्त आ गया है !!
क्रिसमस की बधाई!
कटाक्ष के साथ .... अच्छी लगी यह रचना....
मेरी क्रिसमस....
भाई-भाई का दुश्मन बन बैठा,
बेटा, बाप को लूटने की फिराक में है!
माँ कलयुग को कोसे जा रही,
बेटी घर से भागने की ताक में है !!
बिलकुल सच लिखा आप ने धन्यवाद
बेहद सटीक और सामयिक कविता. शुभकामनाएं.
रामराम.
नैतिकता ने दम तोड़ दिया कबके,
मानवीय मूल्य सबका ह्रास हो गया !
झूट की देहरी जगमग-जगमग,
दबा सच का आँगन कहीं घास हो गया !!
आज के परिवेश की स्थिति को समेटती हुई बहुत बढ़िया कविता..गोदियाल जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति..
सब जगह तुम..........
मंदिर हो ,मस्जिद,चर्च या गुरुद्वार हो .
मानवता का दस्तावेज है आपका लेखन , सिर्फ कविता नहीं .
सब जगह तुम..........
मंदिर हो ,मस्जिद,चर्च या गुरुद्वार हो .
मानवता का दस्तावेज है आपका लेखन , सिर्फ कविता नहीं .
सलीब पर लटके क्रिश को वर्तमान जगत की निर्ममता की ओर इशारा करती कविता ...
आभार ...!!
सर्वत्र तुम्ही विद्यमान हो, वो चाहे
मंदिर हो,मस्जिद, चर्च अथवा गुरुद्वारे हो !
आ जाओ क्रिस, अब आ भी जाओ,
तुम इस जग के रखवारे हो ! !
बहुत सुन्दर सन्देश देती रचना बधाई
सार्थक प्रस्तुति
क्रिसमस पर एक अच्छी कविता...!
क्रिसमस की बधाइयाँ,गोदियाल साहब..!
बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं आपने?
गोदियाल जी.... नमस्कार.... कैसे हैं आप?
ghazab bhaai godiyaalji laazawaab!!!
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