
इम्तहानों से रही बेखबर,
जिन्दगी की यह रहगुजर,
भटकता फिरा मैं इधर-उधर,
सफ़र-ए-मंजिल चार तलों में !
मुश्किल था मंजिले सफ़र,
संग आया न कोई हमसफ़र,
जिन्दगी बस यूँ गई गुजर,
नामुराद इन पांच बोतलों में !!
उतरा था जब बनके नंदन,
मैंने माँगा था स्नेही स्पंदन,
तुत्ती लगी बोतल नन्ही रूह में,
जबरदस्ती ठूंस दी गई मेरे मुहं में !
वक्त संग मैं कुछ और बड़ा हुआ,
अपने पैरो पर जाकर खडा हुआ,
जब उमंग भरी थी इस देह में ,
तब वक्त गुजरा शीतल पेय में !!
आलिंगन को व्याकुल हुए हम,
गले मिलने को आ पहुंचे गम,
मनोरंजन भरने को जवानी में,
जिन्दगी डुबो दी रंगीन पानी में !
लिफ्ट पहुँची अब अगले तल में,
उम्र सिमट गई फिर शुद्ध जल में,
बचा न फिर कुछ मनमानी में,
और ट्विस्ट आ गया कहानी में !!
अबतक की तो मुहं से घटकी थी,
मगर अबके ऊपर से लटकी थी,
फिर पाचन क्षमता कम हो गई,
और एक दिन आँखे नम हो गई !
यही तो था वह मेरा रहगुजर,
पांच बोतलों के बीच का सफ़र,
बोतल से शुरू हुई थी जो कहानी,
इकरोज बोतल पे जाके ख़त्म हो गई!!
जिन्दगी की यह रहगुजर,
भटकता फिरा मैं इधर-उधर,
सफ़र-ए-मंजिल चार तलों में !
मुश्किल था मंजिले सफ़र,
संग आया न कोई हमसफ़र,
जिन्दगी बस यूँ गई गुजर,
नामुराद इन पांच बोतलों में !!
उतरा था जब बनके नंदन,
मैंने माँगा था स्नेही स्पंदन,
तुत्ती लगी बोतल नन्ही रूह में,
जबरदस्ती ठूंस दी गई मेरे मुहं में !
वक्त संग मैं कुछ और बड़ा हुआ,
अपने पैरो पर जाकर खडा हुआ,
जब उमंग भरी थी इस देह में ,
तब वक्त गुजरा शीतल पेय में !!
आलिंगन को व्याकुल हुए हम,
गले मिलने को आ पहुंचे गम,
मनोरंजन भरने को जवानी में,
जिन्दगी डुबो दी रंगीन पानी में !
लिफ्ट पहुँची अब अगले तल में,
उम्र सिमट गई फिर शुद्ध जल में,
बचा न फिर कुछ मनमानी में,
और ट्विस्ट आ गया कहानी में !!
अबतक की तो मुहं से घटकी थी,
मगर अबके ऊपर से लटकी थी,
फिर पाचन क्षमता कम हो गई,
और एक दिन आँखे नम हो गई !
यही तो था वह मेरा रहगुजर,
पांच बोतलों के बीच का सफ़र,
बोतल से शुरू हुई थी जो कहानी,
इकरोज बोतल पे जाके ख़त्म हो गई!!
21 comments:
एक्सीलेंट, गोदियाल जी ।
जिंदगी का सफर बड़ी खूबी से ब्यान किया है।
वाह क्या निरीक्षण है आपका । जिंदगी का सफर पांच बोतल से सहारे ।
बहुत ही अच्छे शब्दों में व्यक्त जिन्दगी का सफर ।
बोतलों के पड़ावों पर जिन्दगी का सफर
।
वाह, यह भी नजरिया है जिन्दगी को देखने का।
ऐसा ही कुछ नया... रोज होना चाहिये।
रचना अच्छी लगी।
वाह!
घुघूती बासूती
अच्छा है भाई..............तस्वीर ने तो जान दाल दी
jeevan ka sach.............bilkul sach........chitron ke sath zindagi bayan kar di.
"बोतल से शुरू हुई थी जो कहानी,
इकरोज बोतल पे जाके ख़त्म हो गई!!"
बहुत अच्छे!
बहुत सुंदर बात कही आपने।
------------------
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।
अरे वाह गोदियाल साहब....मैंने ऐसा तो नहीं सोचा था....
क्या ज़बरदस्त बात कह दी आपने...बिलकुल सही....
बस हमारे लिए एक बोतल कम कर दीजिये .....गरम पानी वाली.....:):)
हा हा हा ...
Dilli ke kavi RASIK Ratnesh pichhle 5 varshon se manch-manch par yahi samjha rahe hain,
aapne theek likha...
बहुत लाजवाब और नायाब.
रामराम.
ज़िन्दगी के सफ़र को बहुत ही बेहतरीन लफ़्ज़ों के साथ दिखाया आपने....
उम्र के संग बोतल आई ओर रंग बदलती रही, बहुत सुंदर
मज़ेदार
बहुत बढ़िया!!!बेहतरीन।
hum to sahab aapki isi baat par fida "kaanch ke gharon par pathar fenkna aur parchhaion mein insan talashna" jis aadmi ke paas yah ruchian hon uski kavita par kya tippani kee ja sakti hai sivay mast ho jane ke... ye paanch botlon wala kissa bahut pyara dil ko chhoo kar nikal jane wala kissa laga. aapke blog ki ye pahli post hi dekhi hai aage kya hai rab khair kare
पांच बोतलों में ही पूरी जिन्दगी जी ली ....यहाँ तो लोग बोतलों पर बोतले चढ़ाये भी बीच मझधार में अटके हैं ...!!
जरूरत के हिसाब से बोतल का माल बदलता रहा
बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में
Post a Comment