यह कविता नहीं, एक चतुर पंडित का है किस्सा
ज्योतिषी में प्रवीण, मगर पडोसियों से थी उन्हें ईर्ष्या
एक बार बड़ा यज्ञं लिया, कुंतलो जौ-तिल फूके
निश-दिन शिव अराधना में, महीनो तक रहे भूखे
शिवजी प्रसन्न हुए और एक घंटी दी उन्हें वरदान
कहा जो इच्छा हो, घंटी बजाना, करना मेरा ध्यान
मनवांछित फल मिलेगा आवश्यकता पर तुमको
ध्यान रहे , तुम्हे एक मिलेगा तो पडोसियों को दो
मुझे एक पडोसियों को दो! मन में ईर्ष्या घिर आई
घर में खाने को न था कुछ, पर घंटी नहीं बजाई
पंडीताईंन ने घंटी आजमाई, जब पंडित न था घर में
जो कुछ माँगा शिवजी से, मिल गया उसे पल भर में
इधर अनाज की एक ढेर लगी, पडोसियों की दो
झोपडी बदल गयी महल में, और पडोसियों के दो
पंडित जी जब घर लौटे, गाँव बदला-बदला पाया
कैसे हुआ यह चमत्कार, तुंरत समझ में आया
ईर्ष्या के मारे रात भर सोच में पड़े रहे,नींद नहीं आई
सुबह सबेरे जब खड़े हुए,एक तरकीब समझ में आई
नहा-धोकर,बड़े जोर से बजा घंटी,किया शिव का ध्यान
भगवन ! मेरी एक आँख फूट जाए, माँगा यह वरदान
पंडित की इस चतुर-मक्कारी पर पडोसी सब दिए रो
पंडित की तो एक आँख ही फूटी, पडोसियों की दो
पंडीताईंन फूली न समाई, पंडित की इस चतुराई पर
पडोसियों की सारी धन-दौलत बटोर लायी अपने घर
इसके बाद तो पंडित का सीना मानो गर्व से तन गया !
कुछ समय बाद चुनाव हुए और पंडत नेता बन गया !!
-गोदियाल
Friday, April 3, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
satiik or chirsatya vayang .
khoobsurat kavy ka roop diya aapne kahani koo
Shukriya, Nirjhar 'Neer' ji.
Post a Comment