झुकी पलके उठाकर के, खुली जुल्फें सवारेगी,
कजरारे मस्त नयनों से नरम परदा भी तारेगी,
एक रोज बैठकर अपने, अरमानों की डोली में,
नुक्कड़ से गुजरते साक़ी जब मधुशाला निहारेगी !
हाला अंगूरी नादाँ, जो हर ख्वाइश पे मरती थी,
फलक पे खड़े-खड़े अपनी किस्मत पर विचारेगी !
दिलजले आतुर खड़े होंगे, पीने को कतारों में,
तंदूर पर तड़पते मुर्गे को वो प्यासा ही मारेगी !
गमजदा महलों के वाशिंदे भी, हैराँ-परेशाँ होंगे,
मुग्ध-मुद्रा में उन्हें 'आइये हुजूर' कौन पुकारेगी !
6 comments:
इस पोस्ट के लिए धन्यवाद । मरे नए पोस्ट :साहिर लुधियानवी" पर आपका इंतजार रहेगा ।
बहुत खूब लाजबाब उम्दा पोस्ट .....बधाई
मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
नेता,चोर,और तनखैया, सियासती भगवांन हो गए
अमरशहीद मातृभूमि के, गुमनामी में आज खो गए,
भूल हुई शासन दे डाला, सरे आम दु:शाशन को
हर चौराहा चीर हरन है, व्याकुल जनता राशन को,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
वाह..वाह..!!
दिलजले आतुर खड़े होंगे, पीने को कतारों में,
तंदूर पर तड़पते मुर्गे को वो प्यासा ही मारेगी !
गमजदा महलों के वाशिंदे भी, हैराँ-परेशाँ होंगे,
मुग्ध-मुद्रा में उन्हें 'आइये हुजूर' कौन पुकारेगी !
vah hr ak sher mn ko chhone wala bahut bahut abhar ....vastav me gazab ki kalpana hai apki .. badhai
वाह! रचना को पढ़ कर अच्छा लगा .....
बहुत खूब! लाज़वाब प्रस्तुति..
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