एक मंझे हुए, कुशल
आखेटक की भांति,
टकटकी लगाए
तकती रही वो तब तलक !
कमवक्त एक तरसाती बूँद,
पा नहीं गया जब
उसका तड़पता जिस्म
और प्यासा हलक !
वक्त सचमुच
बहुत बदल गया है ,
जभी तो,
जरूरत पर अक्सर
अब बादल भी
बेवफाई कर जाते है,
और धरा के कंठ से
दूर पहाड़ों पर
मीठे जलगीत भी नहीं फूटते !!
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