थे बादल घनेरे,
तो हुई बहुत तेज बारिश थी,
थी दिल में कसक,
तो लवो पे सिफारिश थी!
शामें उल्फत भरी थी,
कोई तन्हा न रह जाए ,
कोई मायूस न हो,
यही मन की गुजारिश थी!!
चाहता अगर रात
बसर कर देता मयखाने में,
न तमन्ना थी ऐसी,
और न कोई ख्वाइश थी!
मनाही पे भी
मिन्नते करता रहा मुकद्दर से,
बस ये समझ लो,
तकदीर से आजमाइश थी !!
Friday, September 10, 2010
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8 comments:
कि शामें उल्फत भरी है, कोई तन्हा न रहे,
मायूस न होवे कोई छोटी सी गुजारिश भी !!
वाह बहुत खूब। धन्यवाद।
कि शामें उल्फत भरी है, कोई तन्हा न रहे,
मायूस न होवे कोई छोटी सी गुजारिश भी !!
वो कह गए कि उद्वेग जिन्दगी में ठीक नहीं,
हमने रखी ही कब थी, कोई फरमाइश भी !
क्या बात है जी!!! मन को छूने का पूरा माद्दा रखती है आपकी ये रचना
बहुत बढ़िया लिखा है
मनमाफिक मौसम की अच्छी रचना ।
उम्मीद को जगाती रचना। बहुत सुंदर।
बहुत खूब.....बहुत बढ़िया लिखा है...धन्यवाद।
हैं बादल घने , तो है बहुत तेज बारिश भी....
इसे यूँ पूरा किए देते हैं.....
चली जब तेज़ हवा तो उडा देगी बादल भी
इस से पहले कि सब कुछ यूँ ही उड़ जाए
बहती गंगा में हाथ तो जरूर धो लिए जाएँ....
आप का मेरे ब्लॉग पर आना...और मछ्छर की वार्ता सुनाना बहुत अच्छा लगा ।
माना कि मिलता है, बहुत कुछ मुकद्दर से,
छोड़ेंगे न हरगिज तकदीर से आजमाइश भी !!
क्या बात है .....!!
संघर्ष ही तो जीवन है .......!!
I appreciate your lovely post, happy blogging!!!
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