
आड़ी-तिरछी ,
टेडी-मेडी,
कहीं चिकनी,
कहीं कड़क,
सुनशान
पहाडी सड़क,
यों समेटे है खूबसूरती
वह भी शुद्ध सब,
दीखने में मगर
एकदम खूसट सी
गंवार, बेअदब,
रास्तों का मंजर और
खुशनुमा पलों का प्राकृतिक सौन्दर्य ,
पथिक को भाता है,
मगर
कोप- इजहार सभी को डराता है!
पथिक का मन रखने को,
झूठ भी नहीं बोल पाती,
और सीधे ही
सतर्कता का संकेत लगाती,
उसे तो
बनावटी बनना ही नहीं आता है !!


दूसरी तरफ
लिए ढेरों तड़क-भड़क,
वो मैदानी सड़क,
खूब चौड़ी और
बड़ी-बड़ी,
अनेकानेक
सौन्दर्य सुधार के
लेप से दबी पडी,
दीखने में एकदम
सीधी लगती है, मानो
कोई सी उलझनों में
वो ना घिरी हो,
एकदम चिकनी सपाट,
ऐसी कि हया भी
फिसलकर कहीं,
किसी गटर में जा गिरी हो,
मुस्कुराकर स्वागत करती
हर पथिक का,
उसकी हर इक अदा
यों तो बनावटी है,
मगर लगती खरी है,
राही को तनिक अहसास
नहीं होने पाता !
जिस राह पर वो चल रहा,
आगे वो राह
इसकदर काँटों भरी है,
कि चलना बेहद कठिन हो जाता!!

टेडी-मेडी,
कहीं चिकनी,
कहीं कड़क,
सुनशान
पहाडी सड़क,
यों समेटे है खूबसूरती
वह भी शुद्ध सब,
दीखने में मगर
एकदम खूसट सी
गंवार, बेअदब,
रास्तों का मंजर और
खुशनुमा पलों का प्राकृतिक सौन्दर्य ,
पथिक को भाता है,
मगर
कोप- इजहार सभी को डराता है!
पथिक का मन रखने को,
झूठ भी नहीं बोल पाती,
और सीधे ही
सतर्कता का संकेत लगाती,
उसे तो
बनावटी बनना ही नहीं आता है !!


दूसरी तरफ
लिए ढेरों तड़क-भड़क,
वो मैदानी सड़क,
खूब चौड़ी और
बड़ी-बड़ी,
अनेकानेक
सौन्दर्य सुधार के
लेप से दबी पडी,
दीखने में एकदम
सीधी लगती है, मानो
कोई सी उलझनों में
वो ना घिरी हो,
एकदम चिकनी सपाट,
ऐसी कि हया भी
फिसलकर कहीं,
किसी गटर में जा गिरी हो,
मुस्कुराकर स्वागत करती
हर पथिक का,
उसकी हर इक अदा
यों तो बनावटी है,
मगर लगती खरी है,
राही को तनिक अहसास
नहीं होने पाता !
जिस राह पर वो चल रहा,
आगे वो राह
इसकदर काँटों भरी है,
कि चलना बेहद कठिन हो जाता!!

नोट: छवि गुगुल से साभार !
21 comments:
मनमोहक दृश्य । सुन्दर तुलनात्मक रचना ।
लेकिन आखिरी पंक्तियों में समझ नहीं आया क्या कहना चाहते हैं ।
शुक्रिया दराल साहब, मैंने वो पंक्तियाँ हटा ली है , बात कुछ और कहना चाह रहा था, लेकिन आपने सही कहा यहाँ उसका सामंजस्य ठीक से नहीं बैठ रहा था !
दराल साहब के कहने पर अब आपने बहुत बढ़िया कर दिया... अब ठीक है..
दृश्य तो बहुत बढ़िया लगें , कविता उससे भी बढ़िया लगी ।
बहुत खूब
सुन्दर तुलनात्मक दृश्यांकन
चित्र बहुत खूबसूरत्
आप अक्सर ऐसी सुन्दर कवितायें कैसे लिख लेते हैं
"खूब चौड़ी और
बड़ी-बड़ी,
अनेकानेक
सौन्दर्य सुधार के
लेप से दबी पडी,"
हर जो चीज चमकती है उसको सोना नहीं कहते।
badhiya kavita sir...
गोदियाल साहब,
पहाडे सडक और मैदानी सडक का स्पष्ट अन्तर दिख रहा है।
हम तो ऊपर वाले दो चित्रों में ही खो गये।
बहुत बढ़िया तुलना कि है..पहाड़ी सड़क और शहरी सड़क की....
जिंदगी की सड़क को भी दिखा दिया है...
चित्र मनमोहक हैं..
सुंदर कविता, ओर अति सुंदर फ़ोटो धन्यवाद
बहुत कठिन है डगर ................
मनमोहक दृश्य के साथ ....बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....
पहाडी सड़क,
यों समेटे है खूबसूरती
बढ़िया रचना
बढ़िया रचना
पर्वतों के सीने पर बनी आड़ी-तिरछी लकीरों को आपने बहुत ही सुन्दर रूप में पेश किया है!
vaah vaah ............gazab kar diya.........tulnatmak rachna kafi sundar lagi.sath mein pic bhi shandar lagi.
sundar tulanaatmak kaavy, manmohak photo.. badhaai.
ऐसे ही लिखते रहना
वाह क्या बात हैं
अति सुंदर चित्रण
मजा आ गया
"एकदम चिकनी सपाट,
ऐसी कि हया भी
फिसलकर कहीं,
किसी गटर में जा गिरी हो,"
ji bahut khoob!sachchaai si lagti hai...
kunwar ji,
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