हालत पे मेरी न दिल उनके पसीजे ,
न शरमाया उन्हें मेरे इस फटे-हाल ने !
सिद्दत से बड़ी हमने संजो के रखे है ,
जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने !!
यादों की गठरी को सीने पे रख कर,
किया मजबूर चलने को हमें पातळ ने !
क़दमों को अब तक संभाले हुए है,
डगमगाया बहुत रास्तों के जंजाल ने !!
दरख्तों के साये में खिलते है जो गुल ,
उन्हें बिखरा दिया धरा पर अनंतकाल ने !
पर जो गुल किस्मत के खिलाये हुए है,
चिपकाए रखा उन्हें वक्त की चाल ने !!
है मुग्ध क्यों इतना तू खुश्बुओ पर,
किया खुद को परेशां इस सवाल ने !
सिद्दत से बड़ी हमने संजो के रखे है ,
जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने !!
Friday, January 29, 2010
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16 comments:
हालत पे मेरी न दिल उनके पसीजे ,
न शरमाया उन्हें मेरे इस फटे-हाल ने !
सिद्दत से बड़ी हमने संजो के रखे है ,
जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने !!
sundar rachna.
"यादों की गठरी को सीने पे रख कर ..."
पढ़कर याद आ गया ये शेरः
कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया,
कितनी यादों के भटके हुए कारवां, दिल के जख्मों के दर खटखटाते रहे।
इसे यहाँ सुन भी सकते हैं।
"यादों की गठरी को सीने पे रख कर ..."
पढ़कर याद आ गया ये शेरः
कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया,
कितनी यादों के भटके हुए कारवां, दिल के जख्मों के दर खटखटाते रहे।
इसे यहाँ सुन भी सकते हैं।
है मुग्ध क्यों इतना तू खुश्बुओ पर,
किया खुद को परेशां इस सवाल ने !
सिद्दत से बड़ी हमने संजो के रखे है ,
जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने !!
बहुत सही दिशा में लेखनी चलाई है आपने!
बधाई!
असाधारण शक्ति का पद्य, बुनावट की सरलता और रेखाचित्रनुमा वक्तव्य सयास बांध लेते हैं, कुतूहल पैदा करते हैं।
nice
दरख्तों के साये में खिलते है जो गुल ,
उन्हें बिखरा दिया धरा पर अनंतकाल ने !
पर जो गुल किस्मत के खिलाये हुए है,
चिपकाए रखा उन्हें वक्त की चाल ने !!
वाह कितने सुंदर भाव पिरोए आपने...बहुत बढ़िया रचना...बधाई गोदियाल जी
यादों की गठरी को सीने पे रख कर,
किया मजबूर चलने को हमें पातळ ने !
क़दमों को अब तक संभाले हुए है,
डगमगाया बहुत रास्तों के जंजाल ने !!
बहुत अच्छी लगी खासकर ये पंक्तियाँ! सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है!
मज़ा आ गया नया साल मुबारक
है मुग्ध क्यों इतना तू खुश्बुओ पर,
किया खुद को परेशां इस सवाल ने !
सिद्दत से बड़ी हमने संजो के रखे है ,
जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने !!
accha laga ...
वाह वाह गोदियाल जी, क्या कहने!! बहुत खूब, महाराज!
लाजवाब सर जी. आनंद आया.
रामराम.
दरख्तों के साये में खिलते है जो गुल ,
उन्हें बिखरा दिया धरा पर अनंतकाल ने !
पर जो गुल किस्मत के खिलाये हुए है,
चिपकाए रखा उन्हें वक्त की चाल ने !!
Simply great!
दरख्तों के साये में खिलते है जो गुल ,
उन्हें बिखरा दिया धरा पर अनंतकाल ने !
पर जो गुल किस्मत के खिलाये हुए है,
चिपकाए रखा उन्हें वक्त की चाल ने !!
अच्छा है गोदियाल साहब...........बेहतरीन!
पर जो गुल किस्मत के खिलाये हुए है,
चिपकाए रखा उन्हें वक्त की चाल ने !!
बहुत खूब जनाब बहुत ही खूब कहा है...शानदार और जानदार रचना...बधाई..
नीरज
हालत पे मेरी न दिल उनके पसीजे ,
न शरमाया उन्हें मेरे इस फटे-हाल ने ..
ये तो ज़माने की रीत है गौदियाल जी ......... कौन रोता है किसी और की खाती ऐ दोस्त,
सबको अपनी ही किसी बात पे रोना आया ...........
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