भला आदमी न कोई मुझे कह सका,
मैं भला मानुष बनकर न रह सका !
सच कहने की जो ये मुई आदत है ,
मैं झूठ के जज्बातों में न बह सका !!
वह जो यथार्थ से बहुत ही दूर था,
वही सुनने को जमाने को मंजूर था !
यहाँ झूठे वादे दिलों को भिगोते है,
मुंए सच क्यों इतने कडवे होते है !!
सत्य,पल्लू तजने को रजामंद न था,
मिथ्या को संग अपने न सह सका !
भला आदमी न कोई मुझे कह सका,
मैं भला मानुष बनकर न रह सका !!
सैलाब जब दिल के समंदर का बहा,
बस जुबाँ ने जो सच था वही कहा !
फरेब के लोक से जब-जब दिल टूटा,
मानस पे तब ख्यालों का तूफान उठा !!
उजड़ गया सब कुछ उस 'अंधड़' में,
मगर कटु मेरा जमीर न ढह सका !
भला आदमी न कोई मुझे कह सका,
मैं भला मानुष बनकर न रह सका !!
Saturday, January 30, 2010
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16 comments:
"भला आदमी न कोई मुझे कह सका"
आजकल भीत से बुरा किन्तु बाहर से भला आदमी ही भला आदमी कहलाता है।
उजड़ गया सब कुछ उस 'अंधड़' में,
मगर कटु मेरा जमीर न ढह सका !
भला आदमी न कोई मुझे कह सका,
मैं भला मानुष बनकर न रह सका !!
godiyal sahb shandar rachna ke liye abhar
भाई हम तो सब आपको भला मानुष ही कहते हैं।
badi kadvi sachchayi pesh ki hai.............aaj ka yahi to sach hai.
सच कहने की जो ये मुई आदत है ,
मैं झूठ के जज्बातों में न बह सका !!
सैलाब जब दिल के समंदर का बहा,
बस जुबाँ ने जो सच था वही कहा !
क्या बात है गोदियाल जी! आज तो दर्द की गागर उड़ेल दी - सादर साभार - बहुत-बहुत सुंदर.
उजड़ गया सब कुछ उस 'अंधड़' में,
मगर कटु मेरा जमीर न ढह सका !
जमीर ही तो वह पूँजी है जो कायम है तो कोई भी अन्ध्ड़ उजाड़ नहीं सकती.
बेहतरीन खयालों की बेहतरीन रचना
बहुत खूब.....
सच बाँध रहा था ,
अभी तसमे अपने !
झूठ कर विश्व भ्रमण ,
इतरा रहा था सचमें ..!!
बहुत बढिया रचना !!
हमें तो वह गीत याद आ गया--
दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा, बरबादी की तरफ ऐसा मोड़ा, एक भलेमानुष को अमानुष्ा बनाकर छोड़ा...
सैलाब जब दिल के समंदर का बहा,
बस जुबाँ ने जो सच था वही कहा !
फरेब के लोक से जब-जब दिल टूटा,
मानस पे तब ख्यालों का तूफान उठा !!
खूबसूरत अभिव्यक्ति...बढ़िया रचना आभार!!
काफी संतुष्टि प्रदान कर गई यह कविता।
सच कहने की जो ये मुई आदत है ,
मैं झूठ के जज्बातों में न बह सका !!
अब क्या कहूँ गोदियाल जी , मन की बात तो आपने सारी कह दी
सच कहने की जो ये मुई आदत है ,
मैं झूठ के जज्बातों में न बह सका !!
kya ajeeb kamal hai, apna bhi yahi haal hai...
वह जो यथार्थ से बहुत ही दूर था,
वही सुनने को जमाने को मंजूर था !
यहाँ झूठे वादे दिलों को भिगोते है,
मुंए सच क्यों इतने कडवे होते है !!
सच में सच कड़वा ही होता है।
सुन्दर।
सैलाब जब दिल के समंदर का बहा,
बस जुबाँ ने जो सच था वही कहा ...
कमाल की बात कह दी आपने गौदियाल साहब ..... वैसे भी जो दिल में हो कह देना चाहिए ........ सच कहने में क्या डर किसका डर ........... बेहतरीन यथार्थ रचना .........
बेहतरीन यथार्थ को बयान करती रचना.
रामराम.
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