जाऊं किधर,
मुसाफिर सोचता है,
दो राहे पर आकर खडा,
उसपे रहबरी का रंग यूँ चड़ा,
खुद राह में रह जाना पडा !
मालूम है
कि सब छोड़ना है,
फिर भी निरंतर लूटे जा रहा,
अजब है यह दस्तूर-ए-दुनिया,
यही सोच दिल दुखाना पडा !
सुख मिलता है
दूसरों की मदद में,
कर भला तो हो भला,
रंग बदलती दुनिया को देख,
अब ख्याल यह पुराना पडा !
संग चलने को
राजी न था जो,
दो-कदम बनके हमसफ़र,
कुछ अनमने मन से सही,
साथ उसको भी निभाना पडा !
जिसकी बांधती
कलतक थी दुनिया,
तारीफों के पुल यहाँ,
उस नामुराद को भी
आखिर में, तैर के जाना पडा !
Saturday, January 16, 2010
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14 comments:
जिसकी बांधती
कलतक थी दुनिया,
तारीफों के पुल यहाँ,
उस नामुराद को भी
आखिर में, तैर के जाना पडा !
इसीलिए कहा गया है कि तैरना आना चाहिए
मिला जब भी मौका साथ छोड़ गए अपने ।
धरे के धरे रह गए एक कनस्तर मेरे सपने।
जिसकी बांधती
कलतक थी दुनिया,
तारीफों के पुल यहाँ,
उस नामुराद को भी
आखिर में, तैर के जाना पडा !
बहुत बढिया , आपकी ये लाईंने तो बहुत सी सच्चाई बयां कर रही है । खूबसूरत रचना
बहुत ही बढ़िया रचना .. भाव बहुत बढ़िया लगे.
सुख मिलता है
दूसरों की मदद में,
कर भला तो हो भला,
रंग बदलती दुनिया को देख,
अब ख्याल यह पुराना पडा !
वर्तमान परिपेक्ष्य को उजागर करती कविता!
बहुत सुंदर भाव लिये है आप की यह रचना.
धन्यवाद
जिसकी बांधती
कलतक थी दुनिया,
तारीफों के पुल यहाँ,
उस नामुराद को भी
आखिर में, तैर के जाना पडा !
सुंदर भाव लिये रचना
sundar bhavpoorna rachna.
nice
wah!narayan narayan
Aaj k halat kehti behad bhavpurn rachna....badhayi...
बहुत खूब गोदियालजी !
ख़ासकर अन्तिम पंक्तियों में तो गज़ब ढ़ा दिया
बहुत ही उम्दा कविता !
बधाई !
संग चलने को
राजी न था जो,
दो-कदम बनके हमसफ़र,
कुछ अनमने मन से सही,
साथ उसको भी निभाना पडा !
सत्य वचन।
मालूम है
कि सब छोड़ना है,
फिर भी निरंतर लूटे जा रहा,
अजब है यह दस्तूर-ए-दुनिया....
गीता ग्यान को फिर से याद करने का समय नही है आज किसी के पास .......... बहुत अच्छा लिखा है ........
सुख मिलता है
दूसरों की मदद में,
रंग बदलती दुनिया को देख,
अब ख्याल यह पुराना पडा !
Shabd ho to eise...
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