कहानी है यह भी एक मजनू की
सुनाता हूं तुमको मै दास्तां जुनूं की,
संग-संग वो दोनो बचपन से खेले थे
साथ ही सजाते अरमानो के मेले थे,
जब से था उन दोनो ने होश संभाला
दिलों मे थी उनकी चाहत की ज्वाला,
परिणय़ मे बंधने की जब बारी आई
अपनो को अपने दिल की बात बताई,
मगर रिश्ता ’बाप’ को यह मंजूर न था !
लाख कोशिश पर भी उसने उसे न पाया
और आखिर मे वही हुआ जो होता आया,
गुजरना पडा मजनू को फिर उस दौर से
हुई, लैला की शादी जबरन किसी और से,
इस तरह मजनू, लैला से सदा को दूर हुआ
पल मे सपनों का घरौंदा चकनाचूर हुआ,
फिर उसके अपने मरहम लगाने को आये
एक नया रिश्ता उसके लिये खुद ढूंढ लाये,
पर रिश्ता उसे ’अपने-आप’ को मंजूर न था !
फिर वक्त का पहिया कुछ और आगे बढा
गांव की इक बाला से प्यार परवान चढा,
हुए तैयार निभाने को दुनियां की रस्मे
खाई उन्होने संग जीने मरने की कसमें,
गांव की गलीयों मे शहनाई बज उठी थी
विवाह को घर-आंगन मे बेदी सज उठी थी,
फिर तभी बदकिस्मती का सैलाब बह गया
और वह मजनू बेचारा कुंवारा ही रह गया,
क्योंकि रिश्ता गांव की ’खाप’ को मंजूर न था !!
Friday, October 2, 2009
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9 comments:
हमारे यहाँ तो यह सदियो से होता आया है।
बेचारा मंजनू....
हाय हाय ये तो अन्याय हुआ मजनू के साथ
मजनूँ को लैला मिल जाए यह बहुत ही मुश्किल है..सदियों से यही होता आ रहा है की लैला मजनूँ को मिल नही पाती..
अच्छी कहानी भारी कविता...धन्यवाद!!!
भाई यह दास्ताने लैला मजनू तो बिलकुल लेटेस्ट है ।
बहुत सुन्दर पोस्ट है।
महात्मा गांधी जी और
पं.लालबहादुर शास्त्री जी को
उनके जन्म-दिवस पर
इन दोनों महान विभूतियों को नमन।
Hai! bechare majnu ke saath phir anyay ho gaya........
Aadarniya Godiyal sahab,,,,,,,,ek nayi post likhi hai gandhiji pe..... dekhiyega usey..
बेचारा मजनू ...और ये खांप की टेंशन ..!!
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