तुम्हे तो मालूम है कि
समय कितना बलवान होता है
पल-पल, हर घड़ी,
इसलिए तूम भी समय बनो,
और अगर समय नहीं बन सकते,
तो कम से कम घड़ी तो बनो,
वह घड़ी, जो दूसरो को समय बताती है !
तुम्हे तो मालूम है कि
यहाँ इतनी आसान नहीं है
जीवन की डगर ,
तुम किसी की राह बनो,
और अगर राह नहीं बन सकते,
तो कम से कम छडी तो बनो,
वह छडी, जो दूसरो को राह दिखाती है !
तुम्हे तो मालूम है कि
यहाँ रिश्तो की क्या अहमियत है
बंधने के लिए,
तुम किसी का रिश्ता बनो,
और अगर रिश्ता नहीं बन सकते,
तो कम से कम कडी तो बनो,
वह कडी, जो रिश्तो को रिश्तो से निभाती है !
तुम्हे तो मालूम है कि
यहाँ साँसों की डोर की क्या अहमियत है
जिंदा रहने के लिए,
मैं जानता हूँ कि तुम,
किसी की साँसों की डोर नहीं बन सकते,
मगर कम से कम लड़ी तो बनो,
वह लड़ी, जो साँसों की डोर को जीना सिखाती है !
Thursday, September 24, 2009
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10 comments:
bahut achchh. A great sequence. A great word.
और अगर रिश्ता नहीं बन सकते,
तो कम से कम कडी तो बनो,
अत्यंत खूबसूरत रचना.
Bahut Hi Sundar Sandesh aapne Diya hai is kavita ke Maddhyam se..
ek ek shabd vichar karane yogy hai..samay bano logo ko sawaron..bahut badhiya badhayi..
गहरे जज्बातों को साधारण से शब्दों की माला में पिरा दिया। वाकई बहुत उम्दा लिखा है। यहाँ आकर अच्छा लगा।
"पल-पल, हर घड़ी,
इसलिए तुम भी समय बनो,
और अगर समय नहीं बन सकते,
तो कम से कम घड़ी तो बनो,
वह घड़ी,
जो दूसरो को समय बताती है!"
वाह..वाह...
गोदियाल जी।
जीवन की सच्चाई से रूबरू कराती,
बेहतरीन नज़्म पेश की है आपने।
मुबारकवाद!
मैं जानता हूँ कि तुम,
किसी की साँसों की डोर नहीं बन सकते,
मगर कम से कम लड़ी तो बनो,
वह लड़ी, जो साँसों की डोर को जीना सिखाती है !
वाह्! बहुत ही उम्दा संदेश देती एक् लाजवाब रचना!
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मुझे तो इस बात पर आश्चर्य लग रहा है आखिर मुझ पर ऐसा घिनौना इल्ज़ाम क्यूँ लगाया गया? मैं भला अपना नाम बदलकर किसी और नाम से क्यूँ टिपण्णी देने लगूं? खैर जब मैंने कुछ ग़लत किया ही नहीं तो फिर इस बारे में और बात न ही करूँ तो बेहतर है! आप लोगों का प्यार, विश्वास और आशीर्वाद सदा बना रहे यही चाहती हूँ!
बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!
बहुत खूब
वाह क्या बात है
और अगर राह नहीं बन सकते,
तो कम से कम छडी तो बनो,
वह छडी, जो दूसरो को राह दिखाती है .....
वाह... गोदियाल जी।
गहरी बात कही है इस रचना के माध्यम से ....... जीवन की सच्चाई से परिचय कराती है आपकी रचना ..... लाजवाब है इसमें छिपा सन्देश ......,
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