आज लिखने के लिए कुछ नहीं मिला तो यह छोटी सी नज्म कह लो या गजल , प्रस्तुत है:
इक मोड़ पे लाकर छोड़ दिया,
हमसे क्यों इतने खफा निकले !
कुछ खोट हमारी वफ़ा में था,
जो इस कदर बेवफा निकले !!
हमको तुम पर ऐसा यकीन था,
न छोडोगे ताउम्र साथ हमारा !
बीच राह में छोड़ के जालिम,
खामोश यों इस दफा निकले !!
पहलू में चले थे हम बनने को,
इक खुबसूरत सी गजल तुम्हारी !
इल्म न था कि लिखे जायेंगे जिस
सफे पर हम, टूटा वो सफा निकले!!
हमने तो कर दिया था अपना,
हर इक पल कुर्बान तुम्ही पर !
सोचा न कभी हाशिये पर अपना ,
जीने का यह फलसफा निकले!!
समझ न पाए अब तक हम,
दस्तूर बेरहम जमाने का !
नुकशान निर्दोष के खाते में,
और दोषी का नफा निकले!!
Thursday, September 17, 2009
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7 comments:
जब लिखने को कुछ नही है तो आपने इतनी खूबसूरत रचना लिखी तो --
बहुत खूब
समझ न पाए अब तक हम,
बेरहम दस्तूर जमाने का !
नुकसान निर्दोष के खाते में,
और दोषी का नफा निकले!!
--बहुत बेहतरीन!! वाह!
बहुत खुब। लाजवाब रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई...........
गोदियाल जी गोद डाला
___पहाड़ खोद डाला
_________मज़ा आया.........
बधाई !
bahut sundar prastuti hai....shandar abhiyakti...
aapki nazm "Indian Jucial System" ke liye satik hai. Jab likne ko hai tab bhi lajbab aur jab likhne ko nahi to aur bhi lajbab. Wah Ustad........
Corrigendum "Indian Judicial System" Not Jucial...sorry for an error...
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