फिर शरद ऋतु आई है,
अलसाये से मौसम ने भी
ली अंगडाई है !
आज फिर से कुछ यादे,
ताजी होकर,
सर्द हवाओं संग
चौखट से अन्दर घुसी तो
फूल बगिया मे सब,
कुम्हला से गये है !
दिमाग मे हरतरफ़
वो श्याम-श्वेत चल-चित्र
चहल कदमी करने लगे
फिर से,
जो वक्त के थपेडो संग
कुछ धुंधला से गये है !!
वो पल,
वो हंसीन लम्हें,
तुम्हें याद हैं न
कि जब
मेरी रूह की परछाइयों से,
इक आह निकली थी !
और युगो से,
सांसों मे भट्कती
किसी अतृप्त तड्पन ने,
धड्कते हुए तुम्हारे
दिल के किसी कोने पे,
खुबसूरत सी वो
इक नज्म लिखली थी !!
और फिर हम
निकल पडे थे तलाशने
अपने लिये
दूर गगन की छांव मे,
एक सुन्दर सा आशियाना !
देखो न,
तुम तो नज्म भी साथ ले गई,
मगर मैने,
उस नज्म का एक-एक मिसरा
कंठस्थ रखा है ,
और हरपल,
गुनगुनाता रहता हूं
वह प्यार का तराना !!
और तो और,
वो हमारे बेड रूम के,
डबुल बेड की दोनो फाटे,
जो तुम खुद ही
अलग-अलग कर गई थी,
मैने उन्हे न तो छेडा,
और न ही फिर से
वो आपस मे सटाई है !
कोने पे रखे
तुम्हारे उस
ड्रेसिंग टेबल के आइने पर
जमी धूल की मोटी गर्त,
इस डर से कि कही,
तुम्हारे माथे की
वह एक बिंदिया,
जो शायद तुम भूल बस,
आइने पे ही
चिपकी छोड गई थी,
कहीं गुम न हो जाये,
मैने इस लिये नही हटाई है !!
बस तुम्हारी
वही तो एक सौगात बची है मेरे पास !
Sunday, November 22, 2009
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16 comments:
तुम्हारे उस
ड्रेसिंग टेबल के आइने पर
जमी धूल की मोटी गर्त,
इस डर से कि कही,
तुम्हारे माथे की
वह एक बिंदिया,
जो शायद तुम भूल बस,
आइने पे ही
चिपकी छोड गई थी,
in panktiyon ne dil ko chhoo liya.... Godiyal ji.....
bahut hi sunder kavita ....
Plz apna mobile number email kariyega mailtomahfooz@gmail.com par ...sabse baat hoti hai..... aapse bhi baar karne ki tammanna hai.... isliye plz apna number mail kariye.... ya mere number 0/9984768524 par call kariye... main intezaar kar raha hoon apka..... bahut khushi hogi...
"मगर मैने,
उस नज्म का एक-एक मिसरा
कंठस्थ रखा है ,
और हरपल,
गुनगुनाता रहता हूं
वह प्यार का तराना !!"
सुन्दर!
शुक्रिया महफूज जी, मोबाइल नंबर किसी वजह से नहीं दे पाउँगा, कोई वजह है, लिख नहीं सकता ! इसी लिए शाश्त्री जी के बोल्गर डिरेक्टरी में भी नहीं भेज पाया ! क्षमा चाहता हूँ, हां ईमेल आई डी है; pcgulani@hotmail.com
गोदियाल सर क्या बात है , इस रचना की हर एक पंक्ति हर एक शब्द जैसे मानिए बहुत कुछ कहते हो । उम्दा रचना
ओह ये यादें...सुन्दरतम..!!!
आज फिर से कुछ यादे,
ताजी होकर,
सर्द हवाओं संग...
'मेरी रूह की परछाइयों से,
इक आह निकली थी !'..
bahut hi bhaavpurn panktiyan...ek nazm jismein yaadon ka dard samahit hai.
khoob abhivyakt kiya hai.
वेदना, करुणा और दुःखानुभूति का अच्छा चित्रण।
जो शायद तुम भूल बस,
आइने पे ही
चिपकी छोड गई थी,
वाह जनाब क्या बात है.... कही दर्द झलकता है आप की कविता मै
धन्यवाद
बहुत बढ़िया रचना . .धन्यवाद.
वाह गोदियाल जी ,
बहुत ही सुंदर..या कहूं कि अद्भुत ..
अजय कुमार झा
वाह गोदियाल जी ,
बहुत ही सुंदर..या कहूं कि अद्भुत ..
अजय कुमार झा
शरद के माध्यम से मनोव्यथा का सुन्दर वर्णन!
तुम्हारे उस
ड्रेसिंग टेबल के आइने पर
जमी धूल की मोटी गर्त,
इस डर से कि कही,
तुम्हारे माथे की
वह एक बिंदिया,
जो शायद तुम भूल बस,
आइने पे ही
चिपकी छोड गई थी...
PYAAR KI GAHRAAIYON SE LIKHI RACHNA HAI ... LAJAWAAB .. KAMAAL KA LIKHA HAI
उस बिंदिया को देखकर आप गाते भी होंगे- तेरी बिंदिया रे हाय हाय तेरी बिंदिया !!
yaadon ke fasana bahut hi vednapoorna hai...........bahut hi sundarta se sanjoya hai.
बहुत बढिया रचना.
बहुत बधाई.
मुन्ना भाई ब्लाग चर्चा मे आपका इंतजार कर रयेले हैं. जल्दीईच पधारने का और आपकी राय भी देने का.
मैं आपका इंतजार कर रयेला है. आप आयेंगे तो बहुत अच्छा लगेगा ना.
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