जब
आज
कलयुग के
इस चरम पर,
अधर्म और असत्य,
अपनी जय-जयकार कर,
खुद ही फूले नही समां रहे,
तो फिर मै तो सिर्फ यही कहूंगा,
कि वो तो हम भी देख रहे है कि;
चोरी और डकैती में इजाफा हो गया ,
कत्ल और बलात्कार में इजाफा हो गया,
घूसखोरी और भ्रष्टाचार में इजाफा हो गया,
धूर्तता और दुष्टता में भी तो इजाफा हो गया,
और जो धर्मगुरु जोर-शोर से दावा करते है कि
उनके धर्मावलम्बियों की आवादी में इजाफा हो गया,
तो मेरे भाई ! किसमे कितना इजाफा हुआ, इससे हमें क्या ?
हाँ, अगर कही इंसानों की तादात में इजाफा हुआ हो तो
बताना, हम तो बस इतनी सी बात से ही ताल्लुक रखते है !!
(आभार-श्री श्याम१९५० का जिनकी टिपण्णी पढ़ यह लिखने का दिल हुआ)
Monday, October 19, 2009
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23 comments:
इजाफा तो
आपके हर लाईन
हर पंक्ति मे दिख रहा है
केवल लाईन मे ही होता तो
कोई विशेष/खास बात नही थी
अर्थ और भाव मे भी इजाफा हुआ है
बहुत खूब कहा है आपने बहुत गहरी बात है
हाँ, अगर कही इंसानों की आवादी में इजाफा हुआ हो तो
बताना, हम तो बस इतनी सी बात से ही ताल्लुक रखते है !!
हाँ भइया सही कह रहे हो।
भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
गोदियाल साहब सही कह रहे है आप!
इंसानों की तादाद में इजाफा .. इस बात के अभी कोई आसार नहीं दिखते !!
गोदियाल साहब कुछ न कुछ तो बढ़ ही रहा है इंसान या हैवान ये पता नहीं ........ आपको दूज की बहुत बहुत बधाई ...........
जनाब इजाफ़ा तो हुआ है लेकिन पता नही इंसान या हैवान मै..बहुत सुंदर लिखा आप ने.
धन्यवाद
बिलकुल सही है इन्सानों मे इज़ाफा होता तो इस तरह दुनिया न जल रही होती आभार्
jee bilkul sahi kah rahen hain aap........... hamein to sirf insaaniyat se matlab hai..........
bahut pahle ek gaana suna tha ki insaan ki aulaad hai tu insaan hi banega.....
mere paas chaar kutte hain.... unko maine bahut hi achche tarah se train kiya hua hai.... aur wo saare kaam karte hain.... par wo jab bhi galtiyan karte hain na.... to main yahi kahta hoon ki kutte ki aulaad hain kutta hi rahega....
hamein insaan se matlab hai.... kisi dharm ki aabaadi mein izaafe se hamein kya lena.... aur kya dena... hum to insaan hi rehna chahte hain..... aur duniya mein pyar aur aman ka hi paigaam dena chahte hain.....
JAI HIND
गोदियाल जी,
बहुत ही सामयिक और सार्थक कविता.....
ये सच है ना जाने किन किन बातों में इजाफा हुआ जा रहा है बस एक इंसानियत में ही कमी आती जा रही है ..
ज़ाहिर है कही न कहीं धर्मावलंबियों की तादाद का बढ़ना और इंसानियत का कम होना समीकरण तो बना ही रहे होंगे....(inversely proportional)
बहुत ही सुन्दर कविता और इसके लिए ह्रदय से आपका धन्यवाद...
बुराई में दिन-ब-दिन इजाफा ही होता है और अच्छाई सिमटती चली जाती है।
हाँ, अगर कही इंसानों की तादात में इजाफा हुआ हो तो
बताना, हम तो बस इतनी सी बात से ही ताल्लुक रखते है !!
bahut sundar, saarthak aur samayik rachna...
पिछली पोस्ट 'विस्टा और ओबामा' पर गोदियाल जी ने अपनी सटीक टिप्पणी दी है । वे लिखते हैं कि " अल्फ्रेड नोबेल जब जिंदा थे तो उन्होंने बारूदी सुरंगे बनाईं और बेच-बेच कर खूब धन कमाया और उस धन के बलबूते यह "शान्ति नोबेल" दुनिया के मत्थे मढ़ दिया और ठीक उसी तरह पिछली शताब्दी में दुनिया भर में हथियारों का जखीरा इस अमेरिका ने बेचा और तनाव पैदा करवाया, तो अब ये उसके बलबूते शान्ति का पुरूस्कार लेने के भी हकदार बनते है न "
अब समझ में आ गया होगा कि गांधी जी को यह बारूदी नोबेल न देकर 'नोबेल' ने कितना बड़ा अहसान हम भारतीयों पर किया है।
insaan ki taadad ghat rahi hai
Ab Insan paida nahi Hote Bhai....
गोदियाल जी वे धर्मप्रचारक तो इन्टरनेट के पन्ने के पन्ने रंग रहे हैं और आपने तो बस दो पंगती मैं ही उनकी हवा निकाल दी | आपकी इस दो पंगती वाली कंजूसी तो बहुत असरदार है ....
बिलकुल सार्थक लेखन ...
कविता तो बाद मे पढ़ूंगा अभी तो इसकी डिज़ाइन देख कर खुश हो रहा हूँ ।
"तुम इतनी सुन्दर हो, तुम्हें देखूं की तुम्हें प्यार करुँ.." किसी महान शायर की ये पंक्तियाँ मै आपकी पंक्तियों के लिए कहता हूँ, क्यों..? क्योंकि कथ्य-शिल्प तो एक तरफ कविता की शिल्पगत-भौतिकी भी लाजवाब है...९० डिग्री का त्रिभुज .......:)
कृपया ङोमो को होमो पढें ।
ङोमो सेपियन्स में तो हुआ है उनमें कितने इन्सान हैं ये खुदा जाने । आपकी कविता अच्छी लगी ।
sir main to is baat pe yahi likhna chahta tha wahan ki-
'kya banana chaha tha kya nikle,
usne banaye jo insaan, hindoo musalmaan nikle.'
magar socha ki wahan likhne ka koi faida nhin hoga..
dil ki baat kahne ke liye bahut bahut shukriya
जी, आबादी में तो एक सेकंड में २.५ का इजाफा हो रहा है. अब उसमे से कितने इंसान बनते हैं, ये तो वक्त ही बताएगा. आपके लिखने का ढंग बहुत पसंद आया. बधाई
"आइये जानें क्यों यूरोपीय व कुछ एशियाई देश शून्य (ज़ीरो) को 'ओ' (O) बोलतें हैं?
Godiyal ji..... isey dekhiyega plz...
बहुत बढ़िया और बिल्कुल सही लिखा है आपने! आजकल तो सच्चाई और ईमानदारी का ज़माना ही नहीं रहा!
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