गाँव-गाँव, शहर-शहर, हर कूचा और गली-गली,
लूचे-लफंगे,चोर-उचक्के, छोटे बड़े सभी बाहुबली!
आज अपनी मुछो पर हर कोई, दे रहा ताव है
क्यूंकि इस देश में यारो,आया फिर से चुनाव है !
आया चुनाव है, नेतागण फिर हो रहे विनम्र है,
इस महाकुम्भ में स्नान को कस रहे कमर है!
अपने किये पापो को धोने, गंगा में लगा रहे गोते,
शेर की खाल पहन, फिर गलियों में घूम रहे खोते!
मुख में इनके फिर सत्यवचन, माथे पर चन्दन है,
नए-पुराने इनके फिर, बन-बिगड़ रहे गठबंधन है!
इधर लोकतंत्र के महाकुम्भ का, गूंज रहा शंखनाद है
उधर चारो तरफ हमारे, फल-फूल रहा आतंकवाद है!
नापुंसको ने भी खूब उड़ाया, इस लोकतंत्र का मखौल,
अब इनकी शक्ले देख जनता का, खून रहा है खौल !
महंगाई और बेरोजगारी का दिलो पर ताजा घाव है,
लोकतंत्र के महापर्व का अब फिर से आया चुनाव है !
-गोदियाल
Tuesday, March 3, 2009
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2 comments:
बहुत सुन्दर. लोकतंत्र कहाँ है? राजतंत्र ही नजर आता है सब तरफ. प्रजा चुनेगी अपने प्रतिनिधि, जो बन जायेंगे राजा ओर करेंगे राज.
a very beautiful poem written
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