क्यों आता नहीं तरस उनको, बढ़ती दिमागी खपत पर हमारे,
थककर हमें ही खिजलाना पड़ता है,बेताब इस हसरत पर हमारे।
तबीयत से फेंका था हमने अपने दिल को, उनके घर की तरफ,
जब हमको लगा,जाहिर कर दी मर्जी,उन्होंने भी खत पर हमारे।
हम रात भर तकते रहे ये सोचकर, सिरहाने रखे सेलफोन को,
सहमे से सुर,वो करेंगे और कहेंगे, कुछ गिरा है छत पर हमारे।
हमने तो इश्क में अपना सबकुछ, कर दिया उन पर न्योछावर,
और वो हमें उन्मत समझते हैं, बहकने की बुरी लत पर हमारे।
लेकर जाएं भी तो जाएं कैसे, उनको बना के अपना हमसफ़र,
हरकतों से लगते नही 'परचेत',जो साथ चलने को तत्पर हमारे।
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