नाम पाक, मंसूबे निर्मम नापाक,
लत संत्रास स्वाद की,
सब झूठे,मक्कार, स्तुति करूँ क्या
किसी एक-आद की !
पिद्दीभर एबटाबाद तो अपना
इनसे सम्भाला न गया,
और कंगले, बात करते फिरते थे
हमारे अहमदाबाद की !!
बीज जैसा, पौध वैसी, उसपर
खुराक द्वेष-खाद की,
छीनकर दुनिया का अमन-चैन,
सुख-शांति बर्बाद की !
कांटे खुद बोये,दोष हमें दिया,
अरे कायरों ! हम तुमसा
दाऊद-ओसामा नहीं पालते,
ये भूमि है गांधी, बोष,
राजगुरु, भगतसिंह, आजाद की !!
जिन्दगी की गाडी, सुबह से शाम तक जाम में फंसी है,
मंजिल-ए-सड़क, नाकामियों की दल-दल में धंसी है, !
राह में जिसे मौक़ा मिला, साला ठोक के चला गया,
अब तो, कभी खुद पे, कभी हालात पे आती हंसी है!!
जिन्दगी की गाडी, सुबह से शाम तक जाम में फंसी है,
मंजिल-ए-सड़क, नाकामियों की दल-दल में धंसी है, !
राह में जिसे मौक़ा मिला, साला ठोक के चला गया,
अब तो, कभी खुद पे, कभी हालात पे आती हंसी है!!
1 comment:
Bahut jordar bat kahee hai. jise chilla chillakar zoot ko such sabit karane ki aadat ho use kya kahenge .
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