सबल और निर्बल के मध्य,
आज दंगल का खेल सारा है !
बलशाली जश्न में मदहोश, निर्बल लाचार, थका-हारा है !!
दुबले को नसीब होती है,
लज्जा, लाचारी, कलंक, खेद !
बाहुबली की जेब में गए,
सारे साम, दाम, दंड, भेद !!
चाह किसे नहीं मगर दुर्बल,
वक्त और हालात का मारा है !
सबल और निर्बल के मध्य,
आज दंगल का खेल सारा है !!
भूमंडलीकरण के दौर में, बेचारा स्वदेशी बह चला है!
पूंजीवाद,साम्यवाद के बीच,
बस दिखावे का फासला है !
देशी छोड़ो, विदेशी अपनावो,
यही सभ्य समाज का नारा है !
सबल और निर्बल के मध्य,
आज दंगल का खेल सारा है !!
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